SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२४८ ) कप्पाणं पावरणं अग्गो अर, चानो झोलिया भिकम्वा । उवग्गहिय कडाहय, तुम्बय मुह दाण दोराई ।।२।। अर्थ---सूत्र अन्य प्रकार से कथन करने पर भी संविम गीतार्थों ने काल आदि की अपेक्षा से कुछ बातों की अन्य प्रकार से आचरणा की है। जैसे वस्त्रों का प्रावरण अोढना, अग्रावतार ( गुह्य भाग पर रहने वाले वस्त्र खण्ड ) का त्याग. झोली में पात्र रखकर भिक्षा लाना, औपग्रहिक उपकरणों का रखना, कटाहक (सिक्यक) में बचा हुआ भोजन रखना, तुम्बक अगर लकड़े के द्रव ग्रहण योग्य भाजन ( तर्पणी घड़ा आदि ) के मुग्व भाग में दोरा देना इत्यादि अनेक आचरणायें संविग्न गीतार्थों ने देश काल को लक्ष्य में लेकर की है। प्राधापधि मौलिक उपकरणों में वृद्धि होते होते अन्त में जो ओघोपधि निश्चित हुई थी। उसका वर्णन इस प्रकार हैपचं पचाबंधो पायढवणं, ज पाय केसरिया । पडलाइ रयत्ताणं, गुच्छो पाय निज्जोगो ॥४१२॥ तिनव य पच्छागा, रयहरणं चेव होइ मुहपत्ती। एसो दुवालस विहो उवहि जिनकप्पियाणं तु ॥४६३।। अर्थ-पात्र १, पात्रबन्ध २, पात्रस्थपनक ३, पायकेसरिया ४, (पात्र प्रमार्जनी ) पटलेह ५, रजस्त्राण ६, गुच्छक ७, (गुच्छा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003119
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1961
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy