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। २२६ ) संस्तारक मण्डली ७, साधु के प्रवेश योग्य ये सात मण्डलियां होता हैं।
इसका तात्पर्य यह है कि जब तक नव्य श्रमण उपस्थापना प्राप्त करके सात आयंबिल नहीं करता, तब तक वह सूत्र पढ़ने वाले श्रमणों, अर्थ सुनने वाले श्रमणों के साथ बैठकर सूत्र नहीं पढ़ सकता, अर्थ नहीं सुन सकता। इसी प्रकार अन्य मण्डलियों के विषय में भी जान लेना चाहिए ।
बाल श्रमणों को उपदेश दश वैकालिक सूत्र के कर्ता श्री शैयम्भव सूरिजी ने अपने पुत्र और शिष्य बालमुनि मनक की प्रारज्या देकर निम्न प्रकार से उपदेश दिया था।
धम्मो मंगलमुकिटं, अहिंसा संयमो तबो । देवावि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो ॥१॥ जहा दुम्मस्स पुप्फेसु, भमरो आविया रसं । ण य पुष्फ किलामेइ, सो अपीणेइ अप्पयं ।।२।। एमए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो । विहंगमा व पुत्फेसु, दाणभत्त सणेरया ॥३॥ वयं च वित्ति लब्भामो, नय कोइ उवहम्मइ । अहा गडेसु रीयन्ते, पुप्फेसु भमरा जहा ॥४॥ महुगार समा बुद्धा जे भवन्ति अणिस्सिया । नाणा पिंडरया दत्ता, तेणबुच्चन्ति साहणोत्ति बेमि ॥शा
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