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B मानव भोज्य मीमांसायाम् ।
चतुर्थोऽध्यायः प्रामुक भोजी जैन श्रमण
अकृताकारितान्नादि माधुका-विधायिनः । महर्पश्चरितं वक्ष्ये, निर्ग्रन्थस्य महात्मनः ॥१॥ अर्थ- अकृत, अकारित, अन्न, पानी आदि की माधुकरी वृत्ति करने वाले महात्मा निर्ग्रन्थ महर्षि का चरित्र कहूँगा । - १. जैन श्रमण की जीवन चर्या
पूर्व अध्यायों में मनुष्य का भोजन और यज्ञादि प्रसङ्गों पर किया जाने वाला आपवादिक भोजन आदि का निरूपण किया गया है । इस अध्याय में हम जैन सम्प्रदाय के श्रमणों (साधुओं) की जीवनचर्या का संक्षेप से निरूपण करेंगे।
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