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मोपमादमनुचिन्नो, आपज्ज न तथा गतं । अवीचि निरयं पत्तो, चतुद्वारं भयानकम् ॥
इति बुत्तक पृ०७२-७३) अर्थ----देवदत्त विघ्न रूप, नरक गामी, नादान, अप्रतिकार्य इन तीन कारणों से, हे भिक्षुओं पाप मित्र से पराभूत, तथा परवश चित्त वाला होकर देवदत्त विघ्न रूप, नरकगामी, नादान, अप्रतिकार्य ( बना )। उत्तर करणीय (सामान्य साधन) विद्यमान होने पर भी अपर भोजन के विशेष लाभ के कारण से संघ के बीच भेद डाला । हे भिक्षो ! इन तीन असद्धर्मों से पराभूत तथा परवश चित्त वाला होकर देवदत्त विघ्नरूप नरकगामी नादान अप्रतिकार्य ( बना )।
लोक में पाप इच्छा वाला कोई उत्पन्न मत हो और पाप इच्छा वालों की जो गति होती है वह इस से जान लो ।
जो पण्डित नाम से अति प्रसिद्ध हुआ, तत्त्वज्ञ के नाते अति सम्मानित हुआ और उज्ज्वल जलोपम यश से देवदत्त यशस्वी बना, ऐसा मैंने सुना था ।
वह देवदत्त प्रमाद के वश होकर तथागत के शरण में न रह कर भयानक चार द्वार वाले अवीचि नरक को पहुँचा ।
भोजनार्थ में आमिषशब्द का प्रयोग द्वे मानि भिक्खवे वे दानानि आमिस दानश्च धम्मदानश्च, एतदग्गभिकरपवे इमेसं द्विन्नदानानं यदिदं धम्मदानं
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