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का भी यही कारण माना जाता है, परन्तु वास्तविक स्थिति ऐसी नहीं है । बुद्ध ने तैयार मांस लेने का भिक्षुओं के लिये निषेध नहीं किया था, फिर भी भिक्षुओं को यह सावधानी रखने की चेतावनी अवश्य दी थी कि वह मांस मत्स्य आदि पदार्थ उनके उद्देश्य से तो तैयार नहीं करवाये गये हैं, इस बात का पूरा ध्यान रक्वें । यदि जांच करने से भिनु को यह पता लग जाय कि यह पदार्थ भिक्षु के लिये बनाया गया है, अथवा वह किसी से सुन ले, अथवा अपनी आंखों देख ले कि यह भिक्षु के निमित्त ही बना है, तो उसे मांस मत्स्य नहीं लेना चाहिए । जांच परताल की म्बट पट में पड़ने के बजाय अनेक भिनु तो मांस मत्स्य लेने से ही दूर रहते थे।
कई भिक्षु उहिष्कृत सामान्य आहार तक को न लेकर माधुकरी वृत्ति से ही अपना निर्वाह करते थे, तब कोई कोई भिक्षु मांस मत्स्य को लेते भी थे, परन्तु उनको संख्या सीमित रहती थी। यही कारण है कि देवदत्त ने ये थोड़े से भिक्षु भी मांस मत्स्य ग्रहण न करे इसके लिये नियम बनाने का बुद्ध से अनुरोध किया था, परन्तु बुद्ध ने उसको स्वीकार नहीं किया और मांस ग्रहण के हिमायती भिक्षुओं ने देवदत्त के सम्बन्ध में झूठी झूठी बातें बुद्ध के कानों पहुँचा कर बुद्ध और देवदत्त के बीच विरोध की गहरी खाई बना डाली, जिसके परिणाम स्वरूप देवदत्त का प्रयत्न सफल न हो सका।
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