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________________ ( २०५ ) बोट कर रस निकाला जाता था, और दूध में छान कर उकाला जाता था। यह सोम रस शक्ति-स्मृति-प्रद होने से देवताओं को चढाकर शेष यज्ञाधिकारी पीते थे । अन्य किसी को पीने अथवा बेचने का अधिकार नहीं था । यही कारण है कि वेद में "पापो हि सोम विक्रयी' यह वाक्य दृष्टि गोचर होता है। हम आशा करते हैं कि विदेशियों के भ्रमण-वृत्तान्तों के आधार पर भारत का इतिहास लिखने वाले उक्त विवरण से कुछ बोध पाठ लेंगे। ३-वैदिक तथा बौद्ध ग्रन्थों में मांस आमिष शब्दों का प्रयोग सामान्य रूप से सब से प्राचीन ऋग्वेद संहिता में आमिष शब्द का प्रयोग ही नहीं मिलता, इतना ही नहीं बल्कि प्राचीन वैदिक निघण्टु में भी मांस अथवा इसके किसी पर्याय का नाम नहीं है । इस कारण यह तो नहीं हो सकता कि उस समय मांस पदार्थ ही नहीं था। मनुष्य पशु के शरीर में रहने वाला धातुओं में से तृतीय मांस धातु उस समय भी विद्यमान था । प्राचीन वेद तथा उसके प्राचीन वैदिक कोश में उसका उल्लेख न होने का कारण यही है कि तत्कालीन ऋषि लोग प्राण्यङ्ग रूप मांस का किसी भी कार्य में उपयोग नहीं करते थे, अतः इनकी बनाई हुई वैदिक ऋचाओं में मांस शब्द नहीं आता था, और न उनके निघण्टु में उसके लिखने की आवश्यकता थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003119
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1961
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size19 MB
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