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कृप्यो रुच्यो ज्वर - श्वास-मेह कुष्ठ-भ्रम-प्रणुत् ॥
अर्थ- सुनिपर ठंडा, दस्त रोकने वाला, मोह तथा त्रिदोष का नाशक, दाह को शान्त करने वाला, हल्का, स्वादिष्ट कपाय रस बाला. रूक्ष, अग्नि को बढ़ाने वाला, बलकारक, रुचिकारक और ज्वर, श्वास, प्रमेह, कुष्ट और भ्रम का नाशक हैं ।
( भाव प्रकाश )
इस विषय में अन्य निघण्टु कार यह लिखते हैं
सुनिषण्णो लघुग्रही वृष्योऽनिकृत्रिदोषहा | मेघारुचिप्रदो दाहज्वरहारी रसायनः ॥
अर्थ-सुनिपण, हल्का, दस्त बन्द करने वाला, वलकारक, अनि बढ़ाने वाला, त्रिदोष का नाश करने वाला, बुद्धिप्रद, रुचिदायक, दाह ज्वर को हटाने वाला और रसायन होता है ।
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कल्पद्र म कोश के वनौषधिकाण्ड में भी कुक्कुट नाम सुनि ters का ही पर्याय बताया है। जैसे
'सूच्याख्यस्तु शितावरः || २६८ ||
सूचीपत्रः शितिवरः स्वस्तिकः पुरुटः शिखी । मेधाद् ग्राहक: सूचिः कुक्कुट सुनिषण्णकः ॥
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अर्थ-सूची, शितावर, सूचिपत्र, शीतंवर, स्वस्तिक, पुरुट, शिखी, सूचि, कुक्कुट, ये सुनिषएक के नाम हैं । सुनिषाक बुद्धि बढ़ाने वाला और दस्त को रोकने वाला है ।
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