SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७८ ) डालकर उसको मुद्रा देकर तीन दिन तक रखना फिर मुद्रा तोड कर वस्त्र से जल छान लेना, बस, यही काञ्जिक है । ___अगर सौवीर बनाना हो तो राई, जीरा, सैन्धानमक, हिंग, सोंठ, और हल्दी कुम्भ के जल में डाल कर निस्तुष कच्चे अगर भूने यव डालकर उस घड़े के मुद्रा दे देना । तीन दिन कुम्भ को मुद्रित रखकर चौथे दिन मुद्रा हटाकर जल वस्त्र से छान लेना, इस प्रकार सौवीर जल तैयार होता है। यवोदक तुषोदक आदि सन्धान जल इसी प्रकार अपने अपने उपादानों से तैयार किये जाते थे । वृहत्कल्प भाष्य में सात प्रकार के सौवीराम्लों का निरूपण नीचे की गाथाओं से स्पष्ट होंगे - अहाकम्मिय सधर पासंड मीसए जाव कीय पूई अत्तकड़े। एक्केकाम्मिय सत्तउ कए य काराविए चेव ॥१७५३।। (बृहत्कल्पभाष्य ) अर्थ-केवल जैन साधुओं के लिये बनाई हुई ? अपने और साधुओं के निमित्त से बनाई गई २, गृहस्थ और अन्य तीर्थिक साधुओं के लिये बनाई हुई ३, गृहस्थ आगन्तुक अतिथि और पाखण्डिकों के लिये बनाई हुई ४, साधुओं के लिये खरीदी हुई ५, पूति कर्म सौवीरिणी ६, और गृहस्थ ने अपने घर के लिये बनवा कर रक्खी हुई सौवीरिणी ७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003119
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1961
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy