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तात्कालिक बीमारी का पूरा वर्णन पढ लिया होता तो हमें विश्वास है, कि वे भगवान् महावीर को मांस खिलाने को तैयार नहीं होते। इनता तो कौशाम्बी स्वयं स्वीकार करते हैं कि उस समय महावीर स्वामी को खून के दस्त लगते थे। यदि अध्यापक कौशाम्बी में समन्वय कारक बुद्धि होती तो इस प्रकार की शारीरिक बीमारी में महावीर पर मांस भक्षण का आरोप लगाने के पहले हजार बार विचार करते । भगवान् महावीर की तात्कालिक हालत कैसी थी इसका कुछ विस्तृत वर्णन देकर हम इस घटना का विशेष वर्ण स्फोट करेंगे । भगवान् की बीमारी के सम्बन्ध में सूत्रकार लिखते
__ "तेणं कालेणं २ में ढियगामे नामं नगरे होत्था वन्नो तस्सणं में ढियगामस्स नगरस्स बहिया उत्तर पुरच्छिमें दिसि भाए एत्थाणं साल कोट्टए नामं चेइए होत्था वन्नओ जाव पुढवि सिला पट्टो तस्सणं सालकोट्टगस्स णं चेइयस्स अदूर सामंते एत्थेणं महेगे भालुया कच्छए यावि होत्था किरहे किण्हो मासे जाव निकरम्ब भूए पत्तिए पुटिफए फलिए, हरियगरे रिज्झमाणे सिरिए अताव २ उवसोभेमाणे चिठ्ठति, तत्थणं में ढियगामे नगरे रेवती नाम गाहा. वइणी परिवसति अट्टा जाव अपरिभूया । __ तएणं समणे भगवं महावीरे अन्नया कदायि पुव्वाणुपुब्धि चरमाणे जाव जेणेव में ढियगामे नगरे जेणेव साल कोट्टए चेइए जाव परिसा पडिगया। त एणं समणस्सभगवओ महावीरस्स सरीरगंसी विपुले रोगायंके पाउन्मूए उज्जले जाव दुरहियासे पित्त
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