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( १५७ ) हैं, मार्गों में अधिक भीड़ नहीं है, बुद्धिमान सुगमता से निष्क्रमण प्रवेश कर सकता है। उसके वाचना, पृच्छना, परिवर्तना अनुप्रेक्षा, और धर्मानुयोग में कोई बाधा नहीं आती, इस परिस्थिति को देखकर भिक्षु उस महाभोज के स्थान पर प्रणीत आहार लेने को जाने निश्चय कर सकता है। ___२--"से भिकखु वा २ से जं बहु आट्ठियं वा मंसं वा मच्छं वा बहु कंटयं अस्सि खलु० तहापगारं बहु अट्टियं वा भंसं लाभे सन्ते से भिक्खू वा सियाणं परो बहु प्राट्ठियं एण मंसेण वा मच्छेण वा उपनिमंतिज्जा-आउ संतो समणा । अभिकखसि बहु अट्टियं मंसं परिगाहित्तए २ एवापगारं निग्धोसं सुच्चा निसम्म से पुवामेव आलोइज्जा--आउ सोभि वा २ नो खलु में कप्पई बहुः पडिगा० अभिकस्खसि में दाउ जावइयं तावइयं पुग्गलं दला हि, मा य अट्ठियाई, से सेवं वयंतस्स परो अभिहदु अंतो पडिग्गहगंसि बहु परिभाइत्ता निहटु दलइज्जा तहप्पगारं पडिग्गह पर हत्थं सि पर पापंसिवा अफा० अने० से आहश्च पडिग्गाहिए सिया तं नो हित्ति वइज्जा नो अणिहित्ति वइज्जा से तमायाय एगंत मवक्क मिज्जा २ अहे आसमंसि वा अहे उवस्सयसि वा अप्पपंडे जाव संताण ए मंसगं मच्छगं भुच्चा अट्ठियाई कंकण गहाय से तमायाय एगंत मवक्कमिज्जा २ अहे झाम थंडिलंसि वा जाव पमज्जिय पर?विज्जा ।।
(सू०५८) चू० १ पिण्डै १ उ० १ प० ३५४ ___ अर्थ--वह भिक्षु अथवा भिक्षुणी ऐसा फल मेवा का गूदा जिसमें से सार भाग ले लिया गया है और अधिक मात्रा में
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