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( १५५ ) -"से भिक्खू वा. जाव समाणे से जं पुण जाणेजामसाइयं वा मच्छाइयं वा मंसखलं वा मच्छ खलं वा आहेणं वा पहेणं वा हिंगोलं वा समेलं वा हीरमाण वा पेहाए अंतरासे मग्गा बहुपाणा वहुबीया बहुहरिया बहु ओसा बहु उदया बहुउतिगपणग, दग मट्टिय मक्कडा संताणया बहवें तत्थ ममण माहण अतिहि किवण वणी मगा उवागया उवागमिस्सन्ति, तत्था इन्ना वित्ती पन्नस्स निक्खमण पवेसाए नो पन्नस्स वायण पुच्छण पटियट्टणाणुप्पेह धम्माणु ओग चिन्ताए से एवं नच्चा तहप्पगारं पुरे संखडि वा पच्छा संखडि वा संखडि संखडि परियाये नो अभिसंधारिजा गमणाए ।
से मिक्खू वा० से जं पुण जाणिज्जा मंशाइयं वा मच्छाइयं वा जाव हीरमाणं वा पेहाए अन्तरा से मग्गा अप्पाणाणा जाव संताणगा नो जत्थ बहवे समण जाव उबागमिस्संति अप्पाइन्ना वित्ती. पन्नस्स निक्खमण पवेसाए पन्नस्स वायण पुच्छण परियट्टणाणुप्पेह धम्माणु ओगचिंत्ताए सेवं नचा तट्टप्पगारं पुरे संखडि वा अभिधारिजा गमणाए । सू० २२ ।। चू०१ पिण्डे १ उ०३ ॥
अर्थ-वह भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि अमुक स्थान मांसादिक (जिस भोज्य में मिठाई आदि गरिष्ट खाद्य पहले खाया जाता हो वह भोज्य) अथवा मांसादिक (जिस भोज में पकाये हुए तन्दुल ओदनादि पहले खाने को परोसा जाता हो वह भोज ) बडा भोज है, और अमुक मांसादि तथा मत्स्यादि तैयार करने के स्थान है। भले ही वह आहेण ( विवाह के अनन्तर वधू का प्रवेश होने पर वर के घर दिया जाने वाला ) भोज हो, पहेण ( वधू के ले जाने
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