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( १२० ) धोरे धोरे यह शब्द मनुष्य आदि प्राणधारियों के तृतीय धातु अर्थ में और वनस्पतिजनिन फल मेवा आदि के अर्थ में प्रयुक्त ह ने लगा।
प्राण्यंगमांस प्राण्यंगमांस खाद्य पदार्थ है, यह पहले कोई नहीं जानता था। परन्तु दुष्काल आदि विषम समय में सभ्य वसतियों से दूर रहने वाले अनार्य लोगों ने पेट की ज्वाला को शान्त करने के लिये आरण्यक जानवरों को मार कर उनका मांस खाने की प्रथा चलायी और इस प्रथा का शिकार करने वाले क्षत्रिय वर्ग को भी चेप लग गया, जो कि पहले मानव-रक्षा के लिये केवल हिंस्र पशुओं का ही शिकार करना उनके कर्तव्यों में सम्मिलित था। परन्तु डायोनिसस आदि विदेशो आक्रमणकारों के सम्पर्क से यहां के क्षत्रिय लोग भी धोरे धीरे मांस मदिरा खाना सोम्व गये थे, फिर भी आर्य जातियों में यह पदार्थ सर्वमान्य कभी नहीं हो सका।
वैदिक धर्म के सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ "ऋग्वेद" में पशु यज्ञों तथा ब्राह्मणों को मांस खाने का अधिकार नहीं है। वेदों का अनुशीलन करने वाले पाश्चात्य विद्वानों का यह कथन कि ऋग्वेद कालीन ब्राह्मण भी अश्वमेध करते और उसका मांस खाते थे कोई सत्यता नहीं रखता। __ऋग्वेद यद्यपि प्राचीन वेद है, फिर भी उसमें कई सूक्त पिछले समय में प्रक्षिप्त किये गये हैं। जैसे कि पुरुषसूक्त । इसी
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