SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०२ ) मारना चाहिए न खाना चाहिए । देवताओं के उक्त कथन का उत्तर देते हुए याज्ञवल्क्य ने कहा मैं इनका मांस अवश्य खाता हूँ, यदि ताजा हो तो । यह हकीकत नीचे लिखे शतपथ ब्राह्मण के उद्धरण से प्रकट होती है। 'स धेन्वैचानडुहश्च नाश्नीयात् । धेन्वनडुहौ वा इदं सर्व विभृस्ते देवा अनुषन धेन्वनडुहौ वा । इदं सर्व विभृतो हन्त । यदन्येपाम् वयसां वीर्यं तद्धेन्वनडुहयोदंधामेति- तस्माद्धेन्वनडुहौ नाश्नीयात् तदुहोवाच याज्ञवल्क्योऽश्नाम्यवाहं मांसलं चेद् भवलीति' 'अश्नाम्येवाहं मांसलं चेद् भवति' इस वाक्यांश में आये हुये 'अश्नामि' इस वर्तमान सूचक क्रिया पद का कौशाम्बी 'खाऊंगा' ऐसा भविष्य-सूचक अर्थ करते हैं, यह भूल है। याज्ञवल्क्य ने अपनी वर्तमान स्थिति का स्वीकार मात्र किया है न कि भविष्य में खाने का आग्रह । 'मांसलं चेद् भवति' इस वाक्य-खंड का वे मांस बढ़ना अर्थ करते हैं, यह दूसरी भूल है, मांस बढ़ने के साथ इस वाक्य का कोई सम्बन्ध नहीं है । मांसल शब्द प्रयोग पर याज्ञवल्क्य यह कहना चाहते हैं कि, मैं मांस खाता अवश्य हूँ पर सभी गाय बैलों का नहीं, किन्तु जो मोटा ताजा और तन्दुरुस्त होता है उसीको खाता हूँ। याज्ञवल्क्य ने वाजपनेयन में गौ को को मेध्य माना है, इस बात को हम स्वीकार करते हैं, परन्तु गौतमधर्म सूत्र के अतिरिक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003119
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1961
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy