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(६७) किया और वलि करने के बाद देखा तो वलि किये गये प्राणियों की जातियाँ हो अमेध्य पायीं, तब उन्होंने उद्घोषित किया कि मनुष्य, अश्व, वृषभ, भेड़, बकरा, सर्व अमेध्य जाति के पशु हैं । इसलिये इनका न यज्ञ में वलि किया जाय न इनका माँस खाया जाय केवल ब्रीहि यव आदि धान्य ही मेध्य है, और उन्ही का पुरोडाश बना कर यज्ञ किये जायें।।
इसी प्रकार शत पथ ब्राह्मण के आधार पर भी भारतीय प्राचीन सभ्यता का इतिहास लिखनेवालों ने देवताओं द्वारा वलि किये हुए उत्क्रान्त मेध्य पशुओं का नामावली दी है,जो नीचे उद्ध त की जाती है :-- ___“पहिले पहिले देवताओं ने मनुष्य को बलि दिया। जब वह बलि दिया गया तो यज्ञ का तत्त्व उस में से निकल गया और उसने घोड़े में प्रवे! किया । तब उन्होने घोड़े का बलि दिया। जब घोड़ा बलि दिया तो यज्ञ का तत्त्व उस में से निकल गया
और उसने बैल में प्रवेश किया। तब उन्हों ने बैल को बलि दिया ! जब वैल बलि दिया गया तो, यज्ञ का तत्त्व उसमें से निकल गया, और उसने भेड़ी में प्रवेश किया । जब भेड़ी बलि दी गयी तो, यज्ञ का का तत्त्व उस में से भी निकल गया, और उसने वकरे में प्रवेश किया । तब उन्होंने बकरे को बलि दिया । जब वकरा बलि दिया तो, यज्ञ का तत्व उसमें से भी निकल गया.
और तब उसने पृथिवी में प्रवेश किया, तब उन्हों ने उसे खोजने के लिये पृथिवी को खोदा, और उसे चावल और यव के रूप में
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