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यज्ञों का निरूपण किया है उनमें अधिकांश यज्ञ तो ब्रोहि यवादिक के पुरोडाश से ही होते थे। पाकयज्ञ जो सात प्रकार के कहे हैं, उनमें से भी एक पशुबंध को छोडकर शेष अहिंसक हैं। हवि. यज्ञों में भी पशुबध तथा अन्य एक दो यज्ञों में पशुवसा से हविष्य का काम लिया जाता था, शेष सभी शुद्ध घृत के हविष्यान्न से किये जाते थे। इस विषय में वसिष्ठस्मृतिकार कहते हैं
"पितृदेवाऽतिथि-पूजायां पशु हिंस्यात् । मधुपर्के च यज्ञे च, पितृदैवत कर्मणि । अत्रैव च पशु हिंस्यान्नान्यथेत्यब्रवीन्मनुः ॥१॥
अर्थ-पितरों के तर्पणार्थ, देवता की पूजा के लिये पशु हिंसा करे।
मधुपर्क में ( अतिथि सत्कार में ) यज्ञ विशेष में और पितरों की पूजा में ही पशु का वध करे अन्यत्र नहीं, ऐसा मनुजी ने कहा है।
उपर्युक्त वसिष्ठ के वचन से यह तो निश्चित हो गया, कि मधुपर्क १, अष्टका २, और खास प्रकार के दैवत यज्ञ विना अन्य यज्ञों में पशुबध नहीं किया जाना था, और जिन जिन कामों में पशु वध होता था, उनको वेदविहित मान कर किया जाता था, और उसको वास्तव में वध नहीं मानते थे । इस सम्बन्ध में वसिष्ठ स्मृतिकार कहते हैं
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