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________________ पास रहते हुए अपना जीवन निर्वाह करते थे, जब कभी अनार्यों से संघर्ष होता, तब वे रुद्र को अपनी सहायतार्थ प्रार्थना करते। अनावृष्टि अथवा जल की आवश्यकता के समय वे वरुण का ऋचाओं द्वारा जल वर्षाने की प्रार्थना करते थे। इसी प्रकार अन्यान्य आवश्यकताओं के उपस्थित होने पर उनकी पूर्ति करने वाले अन्यान्य देवताओं को प्रार्थना करते थे। ऋग्वेद के भिन्न-भिन्न ऋषियों द्वारा रचे गये दश मण्डल थे, और दश ही उनके संस्तविक देव थे। जिनके नाम ये हैं अग्नि, सोम, वरुण, पूषा, वृहस्पति, ब्रह्मणस्पति, पर्वत, कुत्स, विष्णु और वायु। यहां हम भारतवर्ष की प्राचीन सभ्यता के इतिहास के लेखानुसार ऋग्वेद का संक्षिप्त वर्णन देंगे, जिससे पाठक गण यह जान सकेंगे कि वेदकालीन यज्ञ कितने सरल और निर्दोष थे और उनके देवता भी मांसभक्षक नहीं, किन्तु ब्रीहि-यवादि के पुरोडाश से सन्तुष्ट होने वाले थे। ऋग्वेद का संक्षिप्त वर्णन इतिहासकार लिखते हैं "ऋग्वेद में १०२८ सूक्त हैं, जिनमें दस हजार से ज्यादा ऋचायें हैं । बहुत करके ये सूक्त सरल हैं, और उन देवताओं में अथास्य संस्तविका देवाः-- १. अग्नि, सोम, वरुण, पूषा, वृहस्पति, ब्रह्मणस्पति, पर्वत;, कुत्सः, विधगुः, वायुरिति । "यास्कनिरूक्त भाष्ये" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003119
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1961
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size19 MB
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