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में नासूर के दर्द होने के कारण खासकर मांस की खुराक का बढ़ना ही है।
डा० जे० एच० के० लोग लिखते हैं कि एक दर्दी को यह रोग तीन वर्ष से हुआ था । उसके मांसाहार के त्याग करने से वह निरोगी होगया जबकि वह बहुत ही भयंकर जाति का नासूर था।
डा० हेग लिखते हैं कि अन्न, फल, शाक के आहार से यह रोग होता ही नहीं। ___ डा० विलियम लेम्ब का कहना है कि एक ४० वर्ष की स्त्री को नासूर होने से उसको अन्न फलाहार पर रखने से वह निरोगी होगयी थी।
डा० लीओनार्ड विलियम्स का कहना है कि सुधरी हुई मांस खाने वाली प्रजा में ८५ टका छोटे से बड़े तक गले की बीमारियों,
आंतों की व्याधियों से दुःख पारहे हैं । उसका मूल कारण उनका मांसाहार ही है।
चबाते वक्त मांस के छोटे छोटे रेसे दांतों की सन्धियों में भर जाते हैं । जहाँ वे सड़ा करते हैं, कारण दाँत साफ करने के चालू रिवाजों से वे बाहर निकलते ही नहीं, इसके साथ साथ दांत भी सड़ते हैं, और पायरिया जैसे दन्त रोग उत्पन्न होते हैं। इंग्लैण्ड अमरीका जहां मांसाहार प्रचलित है, वहां के मि० आर्थर अन्डरबुड का कहना है कि १५०.वर्ष पहिले की अपेक्षा दाँत के दर्द दश गुने बढ गये हैं । मि० थोमस जे० रोगन लिखते हैं कि ब्रिटिश
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