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धर्म की तीसरी कक्षा-व्रती बनना
'वीतराग! सपर्यातः, तवाज्ञापालनं परम् । आज्ञा राद्धा विराद्धा च, शिवाय च भवाय च ॥'
वीतराग! आपकी पूजा करूं, इससे अच्छा है कि मैं आपकी आज्ञा का पालन करूं। पूजा करना छोटी बात है, आज्ञा का पालन बड़ी बात है। एक बाप के दो बेटे हैं-एक नमस्कार करता है, पग दबाता है, सेवा करता है, पर बाप जो कहता है, वह एक भी नहीं मानता। दूसरा पुत्र सेवा तो नहीं करता, पर आज्ञा का पालन अक्षरशः करता है। दोनों में आज्ञा पालने वाला पुत्र प्रिय लगता है। आचार्य ने कहा- 'जो आपकी आज्ञा का पालन करता है, वह पार हो जाता है। जो आपकी आज्ञा का पालन नहीं करता, उसकी नौका डूब जाती है।' ..
आज धार्मिक जगत् में पूजा अधिक होती है और आज्ञा का पालन कम होता है। फूल चढ़ाते हैं, पूजा करते हैं, नाम का जाप करते हैं, लेकिन भगवान द्वारा कहे गए मार्ग को स्थान कम देते हैं। भगवान् महावीर ने नहीं कहा कि मेरा नाम जपा करो। एक अक्षर भी नहीं कहा। यह भी नहीं कहा कि दूसरों का नाम जपो। भगवान महावीर ने धर्म के दो प्रकार बताए-आगार
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धर्म के सूत्र
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