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गया। क्लर्क ने पूछा-'आप उदास क्यों हैं?' अधिकारी बोला-'मेरी मां चल बसी, उससे नहीं मिल सका। अब अन्त्येष्टि में शामिल होना है। जल्दी यहां से जाना पड़ेगा।' क्लर्क ने तार पूछा, उसे दिया तो वह पढ़कर बोला-'श्रीमन्! आपकी माता नहीं, मेरी माता चल बसी हैं। तार आपके पते से मेरे नाम है।' अधिकारी का चेहरा बदल गया। उदासी मिट गई। क्लर्क ने छुट्टी मांगी कि मां की अन्त्येष्टि में जाना है। अधिकारी ने कहा- 'दो दिन हुए अभी तो आए हो। कुछ दिन ठहरो। माता बूढ़ी थी, मर गई तो क्या हुआ।' बहुत प्रार्थना करने पर छुट्टी नहीं दी। इस क्रूरता से क्लर्क के मन में क्रूरता पैदा हुई। उसने कहा-यदि मेरे पास पिस्तौल होती तो मैं इसे वहीं मार देता।'
प्रश्न उठता है-मन में प्रतिक्रिया क्यों होती है? सब जानते हैं, सारी दुनिया साधु नहीं है। हर व्यक्ति के मन में प्रतिक्रिया होती है। पशुओं के मन में भी प्रतिक्रिया होती है। सांप और ऊंट वर्षों के बाद बदला ले लेते हैं। क्या मनुष्य में पाशविकता नहीं है? वह भरी पड़ी है। जगाने से जाग जाती है। यदि श्रीमद् रायचन्द जैसा व्यवहार हो तो कोई क्रूर नहीं हो सकता। अहिंसा और अनुकम्पा तब होती है जब क्रूरता का विसर्जन होता है।
दो सहोदर भाई भी लड़ते समय दो बाप के हो जाते हैं। एक-दूसरे के साथ निर्मम व्यवहार करते हैं। मां के पांच-सात बेटे हैं, फिर भी मां को कोई नहीं पूछता। क्या यह क्रूरता नहीं है?
एक गांव में साधु है। वह बीमार है। आगन्तुक साधु को पता हो जाए कि यहां साधु बीमार है और यदि वह सीधा चला जाए तो उसे प्रायश्चित्त आता है। इसीलिए की हमारी
सम्यक्दृष्टि (४) म ६५
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