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________________ प्रस्तुति धर्म एक रहस्यपूर्ण और उलझा हुआ शब्द है। इसकी अनगिन व्याख्याएं की गईं, फिर भी इसका रूप सर्वथा अनावृत नहीं हुआ। कुछ व्याख्याओं ने इसके स्वरूप पर आवरण भी डाला है। इस स्थिति में मनुष्य का विवेक ही उसके लिए आलोक-दीप बन सकता है। जीवन का तमिस्रा में गहराते हुए अंधकार से मुक्त होने का एक मात्र उपाय है-धर्म, इसीलिए उसे दीप कहा गया है। उसमें शरण देने की क्षमता है, इसलिए उसे द्वीप भी कहा गया है। इस दीप में स्नेह भरने की कुछ विधियां हैं, पद्धतियां हैं, कुछ सूत्र हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उनका सार संकलित है। वि. सं. २०२८ की बात है। मेरी संसारपक्षीया माता साध्वीश्री बालूजी अस्वस्थ थीं। वे गंगाशहर में विराज रही थीं। उनसे मिलने के लिए मैं कुछ साधुओं के साथ गंगाशहर गया था। उन दिनों वहां धर्म के विषय में प्रवचन की श्रृंखला चली थी। प्रस्तुत पुस्तक में वे प्रवचन संकलित हैं। उनका संकलन व सम्पादन मुनि श्रीचन्द्रजी ने किया है। इससे धर्म की कुछ आलोक-रश्मियो को पकड़ने में सुविधा हो सकेगी। सहज-सरल भाषा में प्रदत्त प्रवचन जन-साधारण के लिए भी सहज पठनीय बन सकेंगे। आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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