SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भिक्षु स्वामी ने जितनी तर्कयुक्त बात कही थी, उतनी काण्ट ने भी नहीं कही ।" हमें पहली बार ऐसा सुनने को मिला, हमें प्रोत्साहन मिला । हमने समझा, हमारा दर्शन महत्त्वपूर्ण है। धवल समारोह पर गुरुदेव ने मुझे आदेश दिया कि भिक्षु स्वामी पर कुछ लिखो। मैंने 'भिक्षु विचार दर्शन' नामक पुस्तक लिखी । हिन्दुस्तान के दो सौ विद्वानों का अभिमत उस पुस्तक पर आया है। उन लोगों ने स्वीकारा है कि आचार्य भिक्षु महान् दार्शनिकों में से एक थे । कुछ विद्वानों ने लिखा है कि यह पुस्तक गीता के बाद दूसरा स्थान रखती है। यदि गुरुदेव आधुनिक भाव और भाषा में अभिव्यक्ति नहीं देते तो यह स्थिति नहीं बनती। साहू शान्तिप्रसादजी ने कहा- "हम तेरापंथ को नहीं जानते थे, आपने जैन धर्म पर इतना कार्य किया है कि आज जैन सम्प्रदायों में तेरापंथ सबसे आगे आ गया है । " छोटी बात में उलझने वाले बड़ा काम नहीं कर सकते धर्म जीवन - कल्याण का साधन है । कर सकें तो करें; नहीं तो धर्म के नाम पर अधर्म को प्रोत्साहन न दें। लोगों का विकास इसलिए नहीं होता कि वे धर्म को नहीं पकड़ते, ऊपर की बात पकड़ते हैं । इन बातों से धर्म जीवन में तीन काल में भी नहीं आएगा । कर्म के क्षेत्र में पक्षपात नहीं है। भगवान महावीर ने बताया है - जो करेगा सो भरेगा । इसलिए धर्म के द्वारा अपने को उठाएं। दृष्टि का परिमार्जन करें धर्म के विषय में दृष्टि समीचीन करें। इसके लिए स्वाध्याय आवश्यक है। जैनों के हजारों-हजारों घर हैं, परन्तु कहीं भी स्वाध्याय - मण्डल या अध्ययन कक्ष नहीं है । कम-से-कम दस प्रतिशत लोग तो जैन धर्म के जानकार होने ही चाहिए। एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो सार्वजनिक ४० धर्म के सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy