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तेइंदिया अभिहया परिताविया तस्स मिच्छामि दुक्कडं। कंथु चींटी आदि किसी जीव की हिंसा की हो तो मिच्छामि दुक्कडं। यह शब्दावली सहायक सेनापतियों ने सुनी तो वे चौंके यह क्या? वे रानी के पास गए और बोले-'क्या हमें मरवाना है और देश को नष्ट करवाना है? आपने सेना की बागडोर किसको सौंप दी? वह तो एकेन्द्रिय को भी मारने का पाश्चात्ताप कर रहा है।' रानी घबराई। सेनापति को बुलाया और पूछा-'आप कल क्या कर रहे थे।?' सेनापति बोला- 'पाक्षिक प्रतिक्रमण कर रहा था। रानी ने कहा-'एकेन्द्रिय को मारने का 'मिच्छामि दुक्कडं' ले रहे थे, फिर आप लड़ाई कैसे लड़ेंगें?' सेनापति ने कहा-मैं जैन श्रावक हूं, भगवान महावीर का अनुयायी हूं। भगवान ने बताया है कि बिना प्रयोजन एक दातून भी तोड़ना हिंसा है। साथ-साथ मैं नागरिक भी हूं। उसके कर्तव्य से दूर कैसे रह सकता हूं? कल आप देख लेना' रानी को उस पर भरोसा था। सुबह लड़ाई हुई और सेनापति ने अपनी वीरता दिखाई। शत्रु को सेना भाग खड़ी हुई।।
गांधीजी के पास एक व्यक्ति बहुत सारी दातून लेकर आया। गांधीजी ने कहा-जरूरत से अधिक दातून काटकर वृक्ष को कष्ट देने की क्या आवश्यकता थी? गांधीजी में अहिंसा का कितना विवेक था? पता नहीं, जैन कहलाने वालों में इतना विवेक है या नहीं।
___गांधीजी के पास रहने वाले एक व्यक्ति ने खटिया सरकाई। गांधीजी ने उसे देखा और पूछा-सरकाते समय क्या देखा था कि नीचे जीव थे या नहीं?
अनावश्यक हिंसा को गांधीजी क्षम्य नहीं मानते थे। अर्थहिंसा १८६ म धर्म के सूत्र
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