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है। प्राचीन के लिए हजारों ने अपने आपको खपाया है। भारत में हजारों वर्ष पहले भी विज्ञान के क्षेत्र में अध्यात्म की तरह ही ऐसे-ऐसे अनुसन्धान हुए हैं। आज यदि उनके सामने उनकी उपलब्धियां रखी जाएं तो आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे।
इसी तरह के अनुसन्धान अध्यात्म-क्षेत्र में किए गए। अनेक ने गूढ़ साधनाएं कीं, तभी अध्यात्म की अनुभूतियां प्राप्त हुईं। गुस्सा या आवेग जब आता है तो तत्काल दो क्षण के लिए श्वास रोक लें। गुस्सा स्वतः ठंडा पड़ जाएगा। इसी तरह के अनेक प्रयोग किए गए हैं। योग शास्त्र को जानने वाला खोज करके देखे कि प्राचीन आचार्यों ने कितने प्रयोग किए हैं। प्राचीन समय में हजारों कोस दूर बैठा साधु किसी अन्य साधु को सिर्फ याद करके उसका आसन डोला (हिला) सकता था और वह समझ जाता था कि उसे याद किया गया है। मैं जो बोल रहा हूं, मेरे ये शब्द आप साक्षात् नहीं सुन रहे हैं। मेरे ये शब्द ब्रह्माण्ड से टकराकर आपके पास पहुंचते हैं। क्या यह विज्ञान नहीं है?
इस दृष्टि से धर्म-विज्ञान दो धाराएं या शाखाएं नहीं हैं, एक ही चेतना-प्रवाह की दो कड़ियां हैं। मूल एक है, टहनियां दो हैं।
जिस तरह विज्ञान की उपलब्धियों का उपयोग विनाशकारी कार्यों में किया गया जाता जो सर्वविदित है, उसी प्रकार धर्म का उपयोग भी अनुचित ढंग से किया गया है और कहीं-कहीं तो उसका अत्यधिक दुरुपयोग भी किया गया है। इस तरह हम देखते हैं कि विज्ञान और धर्म का क्षेत्र भिन्न-भिन्न होते हुए भी मूल एक है। और मैं तो कहता हूं यह विशाल नगरों
१५८ म. धर्म के सूत्र Jain Education International
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