SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तुति संतों को सूरज से उपमित किया गया है, क्योंकि वे मनुष्य को जागरण का संदेश देकर उसकी मूर्छा तोड़ते हैं। संतों को पवन की उपमा दी गई है, क्योंकि वे जीवन में नए प्राणों का संचार करते हैं। संतों की तुलना पक्षियों के साथ की गई है। पक्षियों का मधुर कलरव सुनकर विषण्ण मन प्रसन्न हो जाता है। इसी प्रकार अध्यात्म से अनुप्राणित संतों के मीठे गीत संयोग-वियोग-जनित दुःखों से आहत मनुष्य की दिशा बदल देते हैं। उसके शोकाकुल मन को आनंद से भर देते हैं। संत प्रवचनकार और संगायक हों ही, ऐसी कोई नियमकता नहीं है, पर आचार्य तुलसी इस सदी के ऐसे महान संत हुए हैं, जिनके प्रवचन और संगान की कोई सानी नहीं है। वे जिस देश, समाज और परिवेश में रहे, उसे नई दृष्टि और दिशा देते रहे। भविष्यहीन समाज में जीने और विजनहीन स्वप्न-दर्शन को वे प्रशस्त नहीं मानते थे। उनका चिंतन उदात्त और दृष्टिकोण उदार रहा। प्रवचन उनकी दैनंदिनी का प्रमुख अंग था। उनके प्रवचन में विचारों के सतरंग इंद्रधनुष श्रोताओं को मुग्ध कर लेते थे। आचार्यश्री प्रवचन करते तो उनकी मुद्राओं और शब्दों के बीच अद्भुत सामंजस्य रहता रहता था। प्रवचन की विषयवस्तु शरीर के अवयवों और हाव-भावों से अपनी अभिव्यक्ति को सशक्त बना लेती थी। उनके प्रवचन का वाच्यार्थ बहुत तीव्रता से संप्रेषित हो जाता। उसकी संप्रेषणीयता देखकर ऐसा प्रतीत होता, मानो कोई गली हुई धातु एक कमनीय आकृति में ढाली जा रही है। वे आदेय वचनपुरुष थे। उनके आदेश-निर्देश का सीधा अतिक्रमण करने का साहस उनके प्रखर प्रतिद्वंद्वी में भी नहीं था। अनायास कहे गए उनके प्रवचनों से कभी-कभी जीवन में ऐसा झरोखा खुल जाता, जिसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती। आचार्य तुलसी ने अपने जीवन के छह दशकों तक जनता को सघन - सात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy