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________________ सिद्धवाणी आचार्य तुलसी युगद्रष्टा और युगस्रष्टा दोनों थे। उन्होंने युग को देखा और नवयुग का सिरजन किया। नैतिकता और अध्यात्म-इन दोनों विषयों को उनकी प्रकाश-रश्मियों ने आलोकित किया। आचार्य तुलसी महान परिव्राजक थे। प्रव्रज्या ने उनके अनुभव के वातायन को विस्तार दिया। व्यापकता उत्तरोत्तर बढ़ती चली गई। युग के व्यापक दर्शन ने युगीन समस्याओं के निवारण का दायित्व पूरे कौशल के साथ निभाया। आचार्य तुलसी प्रवचनकार थे। प्रवचन करने का अधिकार हर-किसी को प्राप्त नहीं होता। जिसकी अंतःप्रज्ञा जाग्रत होती है, वही पुरुष प्रवचनकार हो सकता है। ___आचार्य तुलसी महान क्रांतिकारी थे। उनकी क्रांत वाणी ने जनमानस को बदला। परिमाणतः रूढ़िवाद के स्थान पर गतिशीलता के दर्शन हुए। ___ आचार्य तुलसी सिद्धपुरुष थे। उनकी सिद्धि अनेक दिशाओं में ज्योति विकिरण करती थी। उस ज्योति का हर कण दूसरों के लिए ज्योतिपुंज जैसा होता था। उनका चिंतन और अनुभव उनकी वाणी में अतिमात्रा में प्रस्फुटित हुआ है। उनकी वाणी में भी सिद्धि थी। उनका हर वाक्य एक शिक्षा-पद था। कुछ व्यक्ति साहित्य-सृजन में प्रवृत्त होते हैं, कुछ व्यक्ति बोलते हैं और सहज साहित्य का सृजन हो जाता है। आचार्य तुलसी ने सुदीर्घकाल-साठ वर्ष तक प्रायः प्रतिदिन प्रवचन किया। कभी-कभी दिन में दो बार, तीन बार, और चार बार भी। फलतः प्रवचनों का एक विशाल कोष हमारे सामने है। इन प्रवचनों में केवल शब्दों का चयन नहीं है, अपितु अर्थ का गांभीर्य भी है, एक प्रेरणा भी है। उसमें स्पष्ट है-चेतना का स्पंदन। मानव की स्पंदित चेतना ही नए विकास का आयाम खोलती है। - पांच - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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