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आठ आचार तथा शंका, कांक्षा आदि पांच दूषणों से मुक्ति-यह
सम्यक्त्वी की पहिचान है। सामायिक चारित्र-समभाव में स्थिर रहने के लिए सर्व सावध योग का
प्रत्याख्यान करना सामायिक चारित्र है। यानी तीन कारण-करना, कराना और अनुमोदन करना तथा तीन योग-मन, वचन और काया-से सावद्य-पापयुक्त प्रवृत्ति का त्याग करना सामायिक चारित्र है। छेदोपस्थापन आदि चार चारित्र इसी के विशिष्ट रूप हैं। उनमें आचार और गुण संबंधी कुछ विशिष्टताएं हैं, अतः उन्हें इससे अलग रखा गया है।
सामायिक चारित्र छठे से नौवें गुणस्थान तक रहता है। स्वयंबुद्ध-शास्त्र-श्रवण, सत्संग आदि किसी बाहरी निमित्त के बिना जो
स्वयं बोधि प्राप्त कर मुक्त होता है, उसे स्वयंबुद्ध कहते हैं।
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- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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