________________
अनुक्रम
दृष्टि : सृष्टि
१. क्या दु:ख को कम किया जा सकता है? २. क्या विचारों को रोका जा सकता है? ३. क्या मूड पर अंकुश लगाया जा सकता है? ४. क्या मूर्छा को कम किया जा सकता है? ५. क्या ध्यान उपाय है दु:ख मिटाने का? ६. सोया मन जग जाए
७. दृष्टि बदलें : सृष्टि बदलेगी युद्धस्व
८. आत्मना युद्धस्व ९. युद्ध : कामवृत्ति के साथ १०. युद्ध : अहंकार के साथ ११. उदात्तीकरण क्रोध का १२. समस्या कलह की १३. समस्या उदासी की
१४. परिष्कार वैरवृत्ति का आत्मा की परिधि
१५. उपसंपदा : जीवन का समग्र दर्शन १६. अपनी आत्मा अपना मित्र १७. समस्या और दु:ख एक नहीं दो हैं १८. बहुत दूरी है आवश्यकता और आसक्ति में १९. चारित्र-परिवर्तन के सूत्र २०. आसक्ति अनासक्ति का आधार निवृत्तिवाद २१. क्या धन की आसक्ति छूट सकती है? २२. अपनी आत्मा अपना मित्र : कब-कैसे?
100
107
115
122
126
131 135 141 148
155
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org