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________________ १. क्या दु:ख को कम किया जा सकता है? हम मनुष्य हैं। हम एक विराट् जगत् से जुड़े हुए हैं। हम पहले प्राणी हैं, फिर मनुष्य हैं। मनुष्य का जगत् छोटा है। हमारे जगत् में चार-पांच अरब आदमी हैं। अन्तरिक्ष में और भी हो सकते हैं। पर मनुष्य का जगत् छोटा है। प्राणी का जगत् बहुत बड़ा है । वनस्पति का जगत् बहुत विशाल है। उसके समक्ष मनुष्य का जगत् नगण्य है, बिन्दु के समान है । प्राणी तीन प्रकार के होते हैं मनः शून्य, मन वाले (समनस्क) और अमन वाले। कीड़े, मकोड़े, कीट आदि प्राणी मन: शून्य होते हैं । इनमें मानसिक चेतना का विकास नहीं होता। ये अपनी जीवन यात्रा चलाते हैं इन्द्रिय चेतना के आधार पर । मानसिक विकास इन्हें उपलब्ध नहीं है । ये अविकसित प्राणी हैं । मनुष्य में मानसिक चेतना विकसित है। वह समनस्क प्राणी है । वह सोचता है । सोचना मन की एक क्रिया है । वह याद रखता है। स्मृति मानसिक प्रवृत्ति है । वह कल्पना करता है। कल्पना मानसिक क्रिया है । इसके आधार पर मनुष्य बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाता है, सपने संजोता है और अनेक कार्य संपादित करता है । चिन्तन, स्मृति और कल्पना का मनुष्य ने बहुत विकास किया है । । इस दुनिया का एक नियम है कि जहां विचार है, मन है, वहां द्वन्द्व भी है। कोई भी मानसिक क्रिया द्वन्द्वमुक्त नहीं होती, द्वन्द्वातीत नहीं होती । जहां मन है वहां संघर्ष है, टकराव है, दुःख है। आदमी दुःख नहीं चाहता, सुख चाहता है । यह स्वाभाविक प्रकृति है । आदमी ही नहीं प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है, कोई दुःख नहीं चाहता । मनःशून्य प्राणी दु:ख भोगते हैं, पर उनका वह दु:ख छोटा होता है, अव्यक्त होता है, कम होता है । उनमें दुःख का भार कम होता है । मनुष्य समनस्क होने के कारण दुःख का भार बहुत ढोता है । दुःख दो प्रकार का होता है। एक है प्रतिकूल घटनाओं के कारण होने वाला दुःख और दूसरा है उन घटनाओं के आधार पर संवेदना से ढोया जाने वाला दु:ख। यह बहुत लम्बा होता है, असीम होता है । घटना का दुःख ससीम होता है, थोड़ा होता है । संवेदना का दुःख असीम होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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