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________________ ६५ क्यों नहीं हो रहा है योगक्षेम की ओर प्रस्थान? अठारह पाप पौद्गलिक हैं। निंदा करना पुद्गल का कार्य है। चुगली पौद्गलिक है, घृणा पौद्गलिक है। अठारह पाप के वर्ण, गंध, रस और स्पर्श हैं। ये व्यक्ति के अस्तित्व पर छाए रहते हैं। उनसे आवृत व्यक्ति को अस्तित्व का पता ही नहीं चलता। बाहर से पुद्गल आते हैं चेतना का सहारा पाने के लिए और वे चेतना के मालिक बन जाते हैं। कुछ ऐसा ही होता है-घर का असली मालिक नहीं रहता, किराएदार मालिक बन जाता है। आजकल कुछ ऐसा ही हो रहा है। घर का मालिक निकल जाए पर किराएदार को निकालना बड़ा कठिन है। बैंगलोर से समागत एक भाई ने बताया-कुछ दिन पहले तेरापंथ भवन किराएदारों से खाली कराया तो लाखों रुपये चुकाए गए। किराएदार भाड़ा चुकाए, यह बात समझ में आती है किन्तु किराएदारों से मकान छुड़ाने के लिए बड़ी-बड़ी राशि दी जाती है, यह समझ से परे की बात है। वास्तव में असली मालिक किराएदार बन बैठे हैं। पुद्गल आया था छाछ के लिए और मालिक बन बैठा। आत्मा के रहने के लिए कहीं स्थान नहीं बचा। उसने पूरे स्थान पर कब्जा जमा लिया। बड़ी विचित्र स्थिति बन गई है। व्यक्ति का निषेधात्मक भावों में जितना आकर्षण है, तोड़-फोड़, हिंसा, उपद्रव आदि में जितना आकर्षण है, उतना विधायक भावों में नहीं है। दूसरे को बुरी बात कहना, बुरे विचार में ले जाना मनुष्य का स्वभाव-सा बन गया है। सारे लोग प्रवाह में बह जाते हैं। कोई अच्छी बात कहता है तो उसे सुनने वाला भी नहीं मिलता। पुद्गल से आवृत चैतन्य इस स्थिति में पहुंच जाता है। सन्देह का बिन्दु पुद्गल ने एक प्रकार से व्यक्ति के सारे अस्तित्व को सन्दिग्ध बना दिया है। आज सचमुच मनुष्य का वास्तविक अस्तित्व संदिग्ध है और पुद्गल का अस्तित्व असंदिग्ध है। आत्मा के विषय में अनेक व्यक्ति संदिग्ध बन जाते हैं किन्तु पुद्गल है या नहीं, यह संदेह शायद ही किसी के मन में उपजता हो। दर्शन जगत् की सबसे विवादास्पद चर्चा है-आत्मा है या नहीं? इन्द्रभूति जैसे महामनीषी और धुरंधर विद्वान् के मन में भी प्रश्न था-आत्मा है या नहीं? ढाई हजार वर्ष पहले भी यह संदेह था, आज भी यह संदेह है और ढाई हजार वर्ष बाद भी यह संदेह बना रहेगा। किन्तु पुद्गल है या नहीं, यह संदेह पांच हजार वर्ष पहले भी नहीं था, आज भी नहीं है और दस हजार वर्ष बाद भी नहीं रहेगा। जहां पुद्गल का एकाधिकार है, एकछत्र साम्राज्य है, वहां योगक्षेम की बात संभव प्रतीत नहीं होती। बाधा कैसे मिटे? शिष्य बोला-'महाराज! क्या इस बाधा को मिटाया जा सकता है, योगक्षेम की ओर प्रस्थान किया जा सकता है?' गुरु ने कहा- 'उपाय तो हो सकता है पर वह कारगर तभी बन पाएगा, जब व्यक्ति का मानस बने। बिना मानस बने कोई भी उपाय सफल नहीं हो सकता।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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