________________
८४
लेश्या : गंध, रस और स्पर्श
धर्म की देन क्या है? धार्मिक जगत् के सामने यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है। लौकिक विद्वानों की देन बहुत है। एक व्यक्ति बीमार है तो उसे आयुर्वेद या आयुर्विज्ञान के निकट जाना होगा। एक व्यक्ति को पढ़ना है तो उसे शिक्षक के पास जाना होगा। शिक्षा के क्षेत्र में, चिकित्सा के क्षेत्र में तथा ऐसे अनेक क्षेत्रों में लौकिक विद्याओं का अवदान प्रत्यक्ष है। विज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिकों का अवदान स्पष्ट है। प्रश्न है-धर्म का कौनसा बड़ा अवदान है, जिससे पूरा समाज उपकृत होता है। क्या हम यह मानें कि धार्मिक लोग बहुत थोड़े में सन्तुष्ट हैं, वे गहराई में जाने की बात ही नहीं सोच रहे हैं? या यह माने कि धार्मिक लोग ऐसी समाजोपयोगी व्यवस्थित पद्धति या प्रक्रिया प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं, जो सारे संसार के लिए मान्य हो जाए। यह चिन्तन का महत्त्वपूर्ण बिन्दु है और इस पर धार्मिक लोगों को विचार करना चाहिए। धर्म का अवदान : भाव चिकित्सा
सवाई मानसिंह हॉस्पिटल, जयपुर के एक डाक्टर से चिकित्सा विषयक बातचीत चल रही थीं। हमने प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में समाधि की चर्चा की, व्याधि, आधि और उपाधि की समस्या को प्रस्तुत किया। डाक्टर साहब ने उपाधि शब्द को बहुत गहराई से लिया। उन्होंने कहा-शारीरिक चिकित्सा के केन्द्र बहुत है। मानसिक चिकित्सा के केन्द्र भी अनेक खुले हैं। शारीरिक चिकित्सा के लिए अनेक बड़े-बड़े हॉस्पिटल हैं, मेडिकल कालेज और डिस्पेंसरियां हैं। मानसिक चिकित्सा के भी अनेक विख्यात केन्द्र विकसित हो चुके हैं किन्तु भाव-चिकित्सा उपाधि चिकित्सा का कोई केन्द्र नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया-जैन विश्व भारती में भाव चिकित्सा का केन्द्र प्रस्थापित होना चाहिए।
यह एक उपयोगी सुझाव है। अध्यात्म भाव-चिकित्सा का महत्त्वपूर्ण सूत्र है। यदि इस एक बिन्दु पर सघन कार्य किया जाए तो व्यक्ति और समाज-दोनों लाभान्वित हो सकते हैं। इसमें अनेक मानवीय समस्याओं का समाधान सन्निहित है। यदि इस दिशा में कोई सार्थक और रचनात्मक कदम उठाया जाए तो धर्म का, अध्यात्म का एक महान अवदान जनता को उपलब्ध हो सकता है। क्यों आती है बीमारी?
भाव चिकित्सा केन्द्र भावनात्मक बीमारियों का चिकित्सा केन्द्र है ! क्या ऐसा भी कोई केन्द्र हो सकता है, जिसमें व्यक्ति को यह सुझाव दिया जाए-तुम ऐसा करो, तुम्हें बीमारी नहीं होगी। बीमारी होने पर उसकी चिकित्सा करना एक बात है और बीमारी आए ही नहीं, इसका उपाय सुझाना बिलकुल दूसरी बात है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org