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लेश्या और रंग
वर्षा बरसी। लोगों के चेहरे खिल गए। आकाश स्वच्छ और प्रसन्न हो गया। सबके रंग बदल गए। आकाश का भी रंग बदल गया, पेड़ पौधों का भी रंग बदल गया और मनुष्य का भी रंग बदल गया । रंग ही है. जो बदलता है । हम परिर्वतन की बात कहते हैं । परिवर्तन करने वाला कौन है? सारा रंगों का खेल है। रंग- बदला, स्वभाव बदला रंग बदला, मन बदला । रंग बदल जाए तो सब कुछ बदल जाए। रंग न बदले तो कुछ भी न बदल पाए। शरीर, मन और - तीनों को रंग प्रभावित करते हैं। मनुष्य पर बाहरी पदार्थों का जो प्रभाव होता है, उसमें सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला है रंग और भी बहुत सारी बातें प्रभावित करती हैं किन्तु रंग सबसे ज्यादा प्रभावित करता है ।
भाव
हमारे शरीर में तीन तत्त्व या दोष माने जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, वात, पित्त और कफ — ये तीन दोष शरीर को चला रहे हैं। हम तीन रंगों को लें- नीला, हरा और लाल । नीला रंग बहुत शन्तिदायक होता है । गर्मी, उष्मा या उत्तेजना – इन सबको मिटाता है नीला रंग । गर्मी के मौसम में नीला रंग बहुत उपयोगी होता है । जितने भी पित्तप्रधान रोग हैं, उन्हें नीला रंग मिटाता है, दूर करता है । हरा रंग रक्तशोधक होता है । यह विजातीय तत्त्वों को बाहर निकालता है । वातप्रधान रोगों को शान्त करने में भी नीला रंग बहुत उपयोगी है । लाल रंग स्फूर्तिदायक है । यह शरीर में चुस्ती लाता हैं, सुस्ती को दूर करता है । जो आलसी हैं, नींद में ऊंघते रहते हैं, सुस्त बैठे रहते हैं, उनके लिए लाल रंग बहुत लाभदायक है । यह कफप्रधान रोगों को शान्त करता है ।
रंगो का काम है शरीर का संतुलन बनाए रखना । एक आदमी बहुत मोटी है, भारी-भरकम है, चर्बी बढ़ती चली जा रही है और दूसरा आदमी बहुत दुबला-पतला है । इसका कारण क्या है? इसका एक कारण है रंगों का असंतुलन। लाल रंग अधिक बढ़ गया है तो व्यक्ति दुबला-पतला हो जाएगा । नीला रंग अधिक बढ़ गया है तो व्यक्ति मोटा-ताजा होगा, उसकी चर्बी बढ़ती जाएगी। जिस व्यक्ति में लाल और नीला - ये दोनों रंग संतुलित हैं, वह न मोटा होगा और न दुबला-पतला। उसका शरीर संतुलित होगा, सुन्दर और सुगठित होगा ।
रंगों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होता है। लाल रंग अधिक बढ़ गया है तो गुस्सा आने लग जाएगा, उत्तेजना ही उत्तेजना आएगी। यदि नीला रंग कम हो
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