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महावीर का पुनर्जन्म
कर्मवाद : महत्त्वपूर्ण नियम
___ आज भी ऐसी अनेक घटनाएं जानने और पढ़ने को मिलती हैं और ऐसा होता भी है। इस जन्म में किया हुआ कर्म इस जन्म में और इस जन्म में किया हुआ कर्म परलोक में भुगतना पड़ता है। जब-जब कर्म का विपाक आता है, व्यक्ति दुःखी बन जाता है। आदमी कहता है-अचानक वज्रपात हो गया। मेरा लड़का चला गया, मेरी पत्नी चली गई, मेरा धन चला गया। आदमी को बड़ा कष्ट होता है। वह यह नहीं सोचता-जब मैंने किसी का कुछ भी नहीं बिगाड़ा तो मेरा बिगाड़ने वाला कौन होगा? इस स्थिति में जब तक कर्मवाद को नहीं समझा जाता, घटना की सही व्याख्या नहीं हो सकती। आदमी उलझा-उलझा रहता है। आदमी न जाने कितने कर्मों का बन्धन करता चला जाता है। वह सोचता है-सारी शक्ति मेरे हाथ में है। मैं जो चाहूं, करूं। मेरा कौन बिगाड़ने वाला है? माओ ने कहा था-सत्ता बन्दूक की नोंक पर चलती है। जब तक हाथ में बन्दूक है, वह उसे चला सकता है। किन्तु इस दुनिया में कोई अपवाद नहीं है, जो बच सके। कोई आज भुगत रहा है, कोई दो दिन बाद भुगतेगा, कोई सौ दिन बाद भुगतेगा। एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसने कर्म किया है और जो उसका परिणाम नहीं भुगतेगा। कर्मवाद का यह महत्त्वपूर्ण नियम है-कृत-कर्म का परिणाम भुगतना होगा।
कर्मवाद का दूसरा नियम है-कृत-कर्म को एक बार नहीं, सौ बार भी भुगतना पड़ सकता है। कभी-कभी आदमी अत्यन्त तीव्रता और क्रूरता से कर्म का बन्ध करता है। उसका परिणाम अनेक बार भुगतना पड़ सकता है। किसी व्यक्ति ने एक आदमी को सताया, पीड़ा दी, दुःख दिया और देता ही चला गया। कुछ सोचा ही नहीं। उसका परिणाम बहुत भयंकर आता है और अनेक बार भी आ सकता है। तीव्र आसक्ति का परिणाम एक जन्म नहीं, दो जन्म नहीं, सौ-सौ जन्म तक भुगतना पड़ता है। यहां तक कहा गया-अनन्त बार भुगतना पड़ता है। राजस्थानी भाषा का प्रसिद्ध दूहा है
दाम दूणा धान तीणा, घी चौपड़ नौ बार।
तिणो तेरह बार, जीव रो वैर अनन्ती बार।। कर्म के प्रति सजग बनें
हम कर्म के नियमों को नहीं जानते, अत्यन्त प्रमाद और उन्माद के साथ कर्मों को बांध लेते हैं। जब उनका गहरा परिणाम भुगतना पड़ता है तब पता चलता है कितना दुःख हो रहा है। व्यक्ति की दशा दयनीय बन जाती है। उस पर दया आने लगती है किन्तु उसने कर्म के बारे में कभी सोचा ही नहीं। वह अपने कृत के प्रति कभी सजग नहीं बना। वह नहीं सोचता-मैंने दूसरों के प्रति क्या किया? अनेक व्यक्ति दूसरों के साथ निर्मम व्यवहार करते हैं, दूसरों को पीड़ा देते हैं, सताते हैं, छोटे-छोटे प्राणियों के प्रति बुरा व्यवहार करते हैं और यह कभी नहीं सोचते-मैं क्या कर रहा हूं। वे लोग विपाक के समय अत्यन्त
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