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________________ दुर्लभ संयोग सरस था। उसे बोलने में कोई कठिनाई नहीं आई। दूसरे विद्वान् को काम सौंप दिया गया। धार्मिक लोगों के सामने प्रश्न है- व्याख्यान की शैली हो? कितनी सरस हो ? उसमें रस होगा तो लोग स्वयं सुनना चाहेंगे। नीरस बात अच्छी भी ग्राह्य नहीं हो सकती । इस आकर्षण के युग में अध्यात्म की बात को सुनने में रस का होना बहुत दुर्लभ है । २५ सफलता का सूत्र तीसरा दुर्लभ तत्त्व है - श्रद्धा । आस्था का होना बहुत ज्यादा कठिन है । वे व्यक्ति धन्य हैं, जिन्हें आस्था का सूत्र उपलब्ध है । वे ही व्यक्ति अपने जीवन में सफल बने हैं, जिन्हें आस्था का वरदान मिला है। धर्म के क्षेत्र में भी आस्था का होना अनिवार्य है। धर्म की एक व्यवस्था है, मर्यादा है। प्रत्येक व्यक्ति को उसके अनुसार चलना होता है, अपनी सारी दिनचर्या बनानी होती है। यदि धर्म की व्यवस्था या मर्यादा के प्रति निष्ठा नहीं होती है तो सारी क्रियाएं यांत्रिक बन जाती हैं। यांत्रिक क्रिया व्यक्ति को बहुत अधिक सफल नहीं बना सकती । यदि उस व्यवस्था के प्रति श्रद्धा का भाव जगे, उसे अपने व्यक्तित्व के रूपान्तरण का उपक्रम माना जाए तो व्यक्ति के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन घटित हो सकता है । चिन्तन का एक कोण है—यह व्यवस्था है, मुझे इसके अनुसार कार्य करना होगा । चिन्तन का दूसरा कोण है- यह व्यवस्था मेरे निर्माण के लिए है, मेरे कल्याण के लिए है, मुझे इसका हर स्थिति में अनुपालन करना है। चिन्तन का पहला कोण कार्य की सफलता में बाधक बनता है और दूसरा कोण उसकी सफलता की गारंटी बन जाता है। उसे सफलता सामने दिखाई देने लग जाती है। 1 श्रद्धाहीन समाज हमेशा रसातल की ओर जाता है। कभी ऊंचा नहीं उठता। कोरा तर्क आदमी को भटका देता है। आस्था के बिना जीवन एक निश्चित दिशा में चल नहीं सकता। आस्थाहीन जीवन उस पतंग की तरह है, जिसकी डोरी आसमान में टूट गई है और जिसे जल्दी ही नीचे गिर जाना है । बहुत बड़ी शक्ति है आस्था । इसी के आधार पर जीवन का निर्माण होता है । वह व्यक्ति कभी भी अपने जीवन का निर्माण नहीं कर सकता, जिसके जीवन में धर्म या अध्यात्म की आस्था न हो । पश्चिमी विचारकों ने आत्म-विश्वास और आस्था पर बहुत बल दिया है। उनका मानना है-आस्था के बिना जीवन कभी नहीं चल सकता। उसके बिना जीवन का कोई आधार ही नहीं रहता । आस्था शून्य कार्य कभी सफल नहीं हो सकता और आस्था के साथ चलने वाला कार्य बहुत जल्दी सफल बन जाता है । सफलता की पहली शर्त है आस्था, श्रद्धा । श्रद्धा का अर्थ है- लक्ष्य के साथ तादात्म्य या एकात्मकता स्थापित कर लेना, तन्मय हो जाना । तन्मयता हीं व्यक्ति को सफल बनाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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