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महावीर का पुनर्जन्म
समन्वय के विकास का विचार हो या एक मंच पर दो विरोधी राष्ट्रों या दो विरोधी समाजों के मिलन का विचार. ये सारे विचार महावीर ने दिए पर उस समय इनका मूल्य नहीं आंका गया। यह सचाई है-कोई भी अच्छा विचार कभी निष्फल नहीं होता। हर विचार फलवान बनता है, पुत्रवान बनता है। उसकी संतति चलती है। चालीस वर्ष पूर्व अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात हुआ। एक संशय के वातावरण में प्रारम्भ हुआ यह आन्दोलन आज वैचारिक दृष्टि से अत्यन्त शक्तिशाली बन गया है इसलिए वह दूसरों को प्रभावित करने में सक्षम है। जब तक विचार शक्तिशाली नहीं बनता है, पकता नहीं है, अपना कवच नहीं बना लेता है तब तक वह प्रभावित नहीं कर पाता। हमें यह मानना चाहिए-अहिंसा का जो विचार चला है, चल रहा है, उसने अज्ञात रूप से दुनिया की महान शक्तियों को प्रभावित किया है: धर्म का मगल स्वरूप
धर्म एक शक्तिशाली चिन्तन है। दुनिया में जितने चिन्तन हुए हैं, उनमें सबसे शक्तिशाली जो चिन्तन है, वह धर्म का चिन्तन है। धर्म के क्षेत्र में सबसे बड़ा अवदान है अहिंसा का, करुणा, मैत्री और संवेदनशीलता का। हम प्रतिदिन यह मंगल भावना करें-शिवसंकल्पमस्तु मे मनः। यह चिन्तन जीवन निर्माण के लिए सबसे शक्तिशाली चिन्तन है। व्यक्ति के मन में यह चिन्तन प्रबल बने-'मेत्ति मे सव्वभूएसु'-सब प्राणियों के प्रति मेरी मैत्री है। इससे बड़ा कोई मंगल कार्य हो नहीं सकता। अहिंसा शक्तिशाली बने, धर्म मंगल व कल्याणकारी बने, वह अफीम या नशा न बने। इसके लिए आध्यात्मिकता का विकास जरूरी है। हम अपने जीवन को आध्यात्मिक बनाएं, संस्थागत धर्म को हिंसा से मुक्त रखें तो धर्म कल्याणकारी बन जाएगा। वह कभी अफीम या नशा नहीं होगा। यह दुर्भाग्य की बात है-धर्म के साथ भी हिंसा जुड़ गई। इसमें धर्म का कोई दोष नहीं है, धर्म के प्रवर्तकों का कोई दोष नहीं है। हम महावीर, बुद्ध, ईसा, महम्मद, जरस्थ आटि धम प्रवतकों के जीवन को पढें। वे कितने साधक व्यक्ति थे। उनमें कितना सहिष्णुता और करुणा थी । सब कुछ विराट था पर जैसे-जैसे स्वार्थ की बातें जुड़ती चली गइ, धर्म के साथ हिंसा जुड़ गई, उसे अफीम, या नशे के रूप में देखा जाने लगा। हम धर्म के मंगल स्वरूप को समझें, अहिंसा, संयम और तप का जीवन जीएं, हमें अनुभव होगा-धर्म अफीम या नशा नहीं है, वह जीवन की पवित्रता का पथ है:
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