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________________ अचिकित्सा ही चिकित्सा २६१ भाव चिकित्सा एक है भाव चिकित्सा की पद्धति। बहुत सारी बीमारियां भावना के कारण होती है। भाव परिवर्तन के द्वारा उसकी चिकित्सा की जा सकती है। मेडिकल साइन्स का मत है—निषेधात्मक भाव आते हैं तो हमारी जैविक रासायनिक श्रृंखला गड़बड़ा जाती है। हमारी जो प्राण शक्ति है, रोग प्रतिरोधक क्षमता है, वह कमजोर हो जाती है। निषेधात्मक भाव से हमारी रोग प्रतिरोधक प्रणाली, जैविक श्रृंखला गड़बड़ाती है तो वह विधायक भाव से स्वस्थ कैसे नहीं होगी? यह बहुत सीधी सी बात है-यदि क्रोध करने से फोड़ा होता है तो क्षमा करने से वह ठीक कैसे नहीं होगा? मन में घृणा और ईर्ष्या का भाव आया तो पेप्टिक अल्सर की बीमारी हो गई। मैत्री की भावना से वह ठीक कैसे नहीं होगी? मेडिकल साइन्स आज इस बिन्दु पर पहुंच गया है-कौन से निषेधात्मक भाव से बीमारी पैदा होती है? और वह बीमारी कैसे मिटती है? एक पुस्तक है-'प्रेक्षाध्यान : अमृत पिटक' । उसमें भावात्मक चिकित्सा के प्रयोग निर्दिष्ट हैं। जापान और अमेरिका में भी इस प्रकार का साहित्य निकल रहा है. जिसमें भाव चिकित्सा के प्रयोगों का विश्लेषण है। यदि अमुक प्रकार के भाव से अमुक प्रकार का रोग उत्पन्न होता है तो अमुक प्रकार के भाव से उस रोग का शमन हो सकता है। यह सुनी सुनाई या किसी धर्म की ही बात नहीं है, आज के चिकित्सा विज्ञान में प्रमाणित तथ्य है। आसन चिकित्सा आसन चिकित्सा भी प्राकृतिक चिकित्सा है। बाहर से कोई दवा लेने की जरूरत नहीं पड़ती। आसन के द्वारा बीमारियों का शमन होता है। जो बीमारियां दवाओं के द्वारा साध्य नहीं मानी जाती, वे आसनों से मिट जाती हैं। एक व्यक्ति ने कहा-सुगर की चिकित्सा नहीं हो सकती। सिवाय इंसुलिन के कोई उपाय नहीं है। पेंक्रियाज गड़बड़ा गया तो उसको ठीक करने का कोई साधन नहीं। आज आसन के द्वारा सुगर की बीमारी का इलाज किया जाता है। अनेक स्थानों पर शिविर लगते हैं और उनमें बहुत रोगी स्वस्थ हो जाते हैं। मद्रास में डाक्टरों ने कई प्रकार के रोगों के समाधान के लिए अनेक शिविर लगाए। उन्होंने प्रमाणित किया-अमुक प्रकार की बीमारियां अमुक-अमुक प्रकार के आसनों से बिल्कुल ठीक हो जाती हैं। डाक्टरों ने सर्वांगासन, विपरीतकरणी आसन, हलासन, शशांकासन आदि अनेक आसनों को रोगों के समाधान में महत्त्वपूर्ण माना है। समस्या का हेतु उपवास चिकित्सा, मानसिक चिकित्सा, भाव चिकित्सा, आसन चिकित्सा-ये ऐसी चिकित्सा विधियां हैं, जिनसे रोगों का इलाज संभव है। प्राणायाम चिकित्सा भी इसी प्रकार की एक चिकित्सा है। सारी प्राकतिक चिकित्सा की विधियां जिनके पास हैं, उन्हें किसी डाक्टर या वैद्य के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती। यह प्राथमिक चिकित्सा है। यदि इनसे समाधान न मिले तो डाक्टर या वैद्य का परामर्श लिया जा सकता है। मृगापुत्र के मन में यह भावना रही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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