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अचिकित्सा ही चिकित्सा
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करना भी चिकित्सा है, पर वह चिकित्सा होते हुए भी अचिकित्सा है। वह चिकित्सा है पर उसे चिकित्सा नहीं माना जाता। वह चिकित्सा है प्राकृतिक।
हम यह देखें-प्राकृतिक चिकित्सा शुरू कैसे हुई? उसका मंत्र कहां से मिला? एक डाक्टर जंगल में गया। उसने देखा-पानी के स्रोत के पास एक हिरणी आई, अपनी टांग को उस स्रोत के जल से सींचने लगी। कुछ देर बाद वह वापस चली गई। डाक्टर ने देखा-हिरणी लंगड़ाती हुई चल रही है, उसके पैर में गहरा जख्म है। वह दो दिन तक निरन्तर आती रही, जख्मी हिस्से पर जल का सिंचन करती रही। दो दिन में वह बिल्कुल स्वस्थ हो गई। डाक्टर को रहस्य उपलब्ध हो गया। वह जान गया कि हिरणी ने पानी से अपनी चिकित्सा की है। डाक्टर ने पानी की चिकित्सा के प्रयोग शुरू किये और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का विकास हो गया।
जर्मनी में इस चिकित्सा पद्धति का विकास हुआ और यह इस शताब्दी की बात है। प्राचीन साहित्य में मिट्टी की चिकित्सा, जल चिकित्सा, उपवास चिकित्सा-इन सबका वर्णन मिलता है। जैन साहित्य में उपवास चिकित्सा का बहुत सुन्दर विवेचन है। आज पाश्चात्य विद्वानों ने उपवास चिकित्सा पर बहुत साहित्य लिखा है, उसका बहुत महत्त्व बताया है। गांधीजी ने भी उपवास चिकित्सा पर बहुत लिखा। उसके प्रयोग किए और कराए। हमें इसका वैचारिक इतिहास खोजना चाहिए। इस विचार का मूल बिन्दु कहाँ है? प्राचीन जैन साहित्य में उपवास चिकित्सा का वर्णन उपलब्ध है। बृहत्कल्प भाष्य में इसका विस्तृत विवेचन है। चिकित्सा की पद्धति
प्रश्न है—कोई मुनि बीमार हो जाए तो क्या करें? इसकी दो पद्धतियां रही हैं। एक यह पद्धति रही-चिकित्सा न करे। दूसरी यह पद्धति रही-चिकित्सा करे। एक मुनि बीमारी को सहन कर लेता है और एक मुनि बीमारी को सहन नहीं कर पाता। जो सहन करता है, वह भी चिकित्सा करे। जो सहन न करे, वह भी चिकित्सा करे। चिकित्सा सबके लिए मान्य है। वह चिकित्सा है उपवास की। हजारों वर्ष पुराना विधान रहा-शरीर का शोषण करो, शरीर को सुखाओ। शरीर का शोषण और विशोषण होता है तो तीन रोग सूख जाते हैं-चक्षुरोग, ज्वर और व्रण।
शुष्यतः त्रीणि शुष्यन्ति, चक्षुरोगो ज्वरो व्रणः । प्रश्न आया-ज्वर आ जाए तो क्या करना चाहिए? कहा गया-ज्वर आने पर कम से कम अट्रम तप (तीन दिन का उपवास करना चाहिए। तो ज्यादा करें पर कम से कम इतना तो करना ही चाहिए।
यदि व्यक्ति तेला करने में असमर्थ है तो क्या किया जाए? तेला पूरा न कर पाए, एक दिन उपवास करते ही पारणा कर ले तो क्या करे? उसके लिए विधान किया गया-एक सप्ताह तक थोड़ा गरम पानी और थोड़ा-सा अन्न। दूसरे सप्ताह तक उस मात्रा को कुछ बढ़ाया जाए। इस प्रकार तीन-चार या पांच सप्ताह तक उसे लंघन कराया जाए। केवल गरम पानी और थोड़ा-सा अनाज For Private & Personal Use Only
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