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________________ उदाहरणार्थ-वीतराग बनना हमारा आदर्श है। उसे ही लक्ष्य के रूप में सामने रखकर हम साधना करते हैं। बावजूद इसके, हमारी साधना का आधार व्यवहार ही है। पूर्ण वीतरागता की स्थिति ग्यारहवें से चौदहवें तक के गुणस्थानों की है। पर छठे और सातवें गुणस्थानों में भी वीतरागता की आंशिक साधना तो की ही जा सकती है, बल्कि इनसे नीचे के स्थानों में भी आंशिक साधना हो सकती है। आत्म-विकास का क्रम साधना की दृष्टि से हम नीचे से चलें तो सबसे पहले सुलभबोधि होना आवश्यक है। उसके पश्चात सम्यग्दृष्टि का क्रम आता है। तदनंतर व्रती, महाव्रती बनने की भूमिकाएं हैं। अंत में वीतरागता की भूमिका आती है। प्रकारांतर से हम कहें तो आत्म-विकास का क्रम इस प्रकार होगा-सबसे पहले तत्त्व सुनना आवश्यक है। सुनने के बाद जानने और पहचानने की बात आती है। उसके पश्चात हेय को छोड़ना तथा उपादेय को ग्रहण करना अपेक्षित है। फिर संयम का और अंत में निवृत्ति का क्रम आता है। कुछ लोग सीधे निवृत्ति की बात करते हैं। हालांकि निवृत्ति की बात अनुचित नहीं है, तथापि साधक सीधा निवृत्ति की भूमिका में कैसे पहुंच सकता है? व्यावहारिक मार्ग यह है कि वह प्रारंभ सत्प्रवृत्ति से करे। सत्प्रवृत्ति करते-करते एक दिन निवृत्ति की भूमिका स्वयं आ जाएगी। किसी से मैत्री हो जाने के पश्चात उसके साथ वैर कैसे टिकेगा? इसी प्रकार पहले सत्प्रवृत्ति-संवलित निवृत्ति होती है और अंत में सर्वथा निवृत्ति/ अक्रियता की स्थिति बन जाती है। उस स्थिति में बोलना, चलना, लेटना, बैठना, खाना, पीना, अक्षिस्फुरणा..."और यहां तक कि सांस लेना भी बंद हो जाता है। इसे शैलेशी अवस्था कहते हैं। इस अवस्था में साधक की आत्मा मेरु की तरह अडोल हो जाती है। फिर उसकी मुक्ति होते विशेष समय नहीं लगता। ___ बंधुओ! विकास का यह क्रम देखकर मैं मुग्ध हूं! सचमुच ऐसा सुंदर और व्यावहारिक क्रम बतलाकर भगवान महावीर ने हमारा परम उपकार किया है। यह ऐसा राजपथ है, जिस पर चलनेवाले के लिए कहीं कोई भटकाव-अटकाव का खतरा नहीं है। नोहर, २३ फरवरी १९६६ .८० आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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