SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाता। अब तो एक ही बात अपने हाथ में रहती है कि बचे हुए समय का अच्छे-से-अच्छा उपयोग किया जाए, उसे सफल बनाया जाए। प्रसंगवश एक बात और कह देना चाहता हूं। अध्ययन के क्षेत्र में भारतीय लोगों के चिंतन और यूरोपीय देशों के लोगों के चिंतन में बहुत अंतर है। भारतवर्ष में जहां पचीस वर्ष की उम्र के पश्चात अध्ययन-काल प्रायः समाप्त मान लिया जाता है, वहीं यूरोप में लोग सत्तर-पचहत्तर और उससे आगे की उम्र तक भी अध्ययन करते हैं, ज्ञान के प्रति सदा जिज्ञासु बने रहते हैं। प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में भी अनेक यूरोपीय विद्वान भारत की संस्कृत-जैसी क्लिष्ट भाषा का अध्ययन करते हैं। यह इस बात का निदर्शन है कि यूरोपीय देशों के लोग विद्या और समय का मूल्य भारतीय लोगों की अपेक्षा ज्यादा समझते हैं। प्रशिक्षक कौन हो ___ जीवन-निर्माण के कुछ सूत्रों की चर्चा मैंने की। ऐसे और भी कुछ सूत्र हैं। पर अहम प्रश्न तो यह है कि इन्हें ध्यान में रखकर विद्यार्थियों को प्रशिक्षण कौन दे। गुरुकुल में जाकर कुलपति या आचार्य के सान्निध्य में वर्षों तक अध्ययन करने का क्रम आजकल बंद हो गया है। लगभाग विद्यार्थी अपने-अपने घर में रहते हुए विद्यालयों और कॉलेजों में अध्ययन करते हैं। ऐसी स्थिति में विद्यार्थियों में सुसंस्कारों के वपन की जिम्मेदारी अभिभावकों तथा विद्यालयों व महाविद्यालयों के अध्यापकों-प्राध्यापकों पर है, पर ये दोनों वर्ग अपनी इस जिम्मेदारी को कहां तक निभाते हैं, यह बहुत स्पष्ट है। अभिभावक सोचते हैं, हमने बच्चों को अध्यापकों को सौंप दिया, अब हमें कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है। बहुत कम ऐसे मातापिता मिलेंगे, जो अपने बच्चों को सुसंस्कारित करने की दृष्टि से सोचते हैं। अधिकतर अभिभावक तो ऐसे ही मिलेंगे, जिन्हें बारह माह में एक दिन भी अध्यापकों से मिलकर बच्चों के सुसंस्कारों की दृष्टि से चिंतन करने का अवकाश नहीं है। ऐसी स्थिति में मेरे मन में कई बार यह बात आती है कि जो माता-पिता अपने बच्चों के प्रति अपना कर्तव्य और दायित्व नहीं समझते, उन्हें बच्चा पैदा करने का अधिकार क्यों मिलता है। इसी प्रकार अध्यापकों को भी बच्चों के सुसंस्कारों की चिंता नहीं है। वे सोचते हैं कि हमें तो वेतन पाना है। हमने बच्चों को कोर्स की पुस्तकें पढ़ा दी और हमारा काम पूरा हो गया। बहुत कम ऐसे अध्यापक होते हैं, जो अध्यापन .६८. -- आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy