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आप देखें, सुबह की छाया लंबी होती है, किंतु दोपहर में सूर्य जब मस्तक पर आ जाता है, छाया स्वयं में सिमट जाती है। मध्याह्न में जो छाया अपने में सिमटी हुई होती है, वह संध्या तक बहुत विशाल हो जाती है । इसी प्रकार प्रामाणिकता और सत्यनिष्ठा से जो व्यापार किया जाता है, उसमें प्रारंभ में मुसीबतें आ सकती हैं, पर अंत में सफलता का द्वार खुल जाता है।
आप देखें, जो साधक साधना करते हैं, एकांत ध्यान करते हैं, श्मशान और सूने घर में कायोत्सर्ग करते हैं, उनके जब सिद्धि निकट होती है, तब उन्हें बहुत-सी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। हमारे एक मुनि ने विशेष साधना प्रारंभ की। अपना अनुभव बताते हुए उसने कहा - ' शुरू-शुरू में मन व्यग्र हो गया । भावना में अनेक प्रकार के उभार आने लगे। बुरी बातों की स्मृतियां ताजा होने लगीं। एक बार तो मेरा मन साधना से हटने लगा, लेकिन मैंने यह सुन रखा था कि साधना के क्षेत्र में भयंकर तूफान आते हैं, उस स्थिति में जो दृढ़ रहता है, वही आगे बढ़ता है। इसलिए मैं अपनी बात पर दृढ़ रहा और अब मैं समस्थिति में हूं।' अच्छे व्यापारी की पहचान
व्यापारियो ! यदि प्रारंभिक मुसीबतों में आप स्थिर रह सकें तो आगे का मार्ग स्वतः प्रशस्त हो सकता है। आपका विरोध है तो सरकार और कानून से है, ग्राहकों ने आपके साथ क्या अन्याय किया है? आप उनकी कसर ग्राहकों से निकालते हैं, यह कहां का न्याय है ? जिस व्यापारी का ग्राहकों के साथ व्यवहार अच्छा नहीं है, उसका व्यापार धीरे-धीरे ठप्प - सा हो जाता है। इसके विपरीत जो व्यापारी ग्राहकों का विश्वास बनाए रखता है, उसके सामने ऐसी स्थिति पैदा नहीं होती, बल्कि उसका व्यापार और अच्छा चलता है। मूलभूत बात है व्यापार में नैतिकता और प्रामाणिकता की। आध्यात्मिक और व्यावसायिक दोनों दृष्टियों से यह आवश्यक है। अच्छे व्यापारी की पहली पहचान यह है कि वह ग्राहक के साथ कभी धोखाधड़ी नहीं करता, उसकी मजबूरी का कभी गलत लाभ नहीं उठाता, क्रूर नहीं बनता। जो व्यापारी ग्राहक को ठगता है, उसकी विवशता का लाभ उठाता है, वह अच्छा व्यापारी तो खैर हो ही नहीं सकता, मनुष्य कहलाने का अधिकारी भी कहां तक है, यह एक प्रश्न है । मैं पूछना चाहता हूं कि जिस व्यापारी की मानवीय संवदेना समाप्त हो गई, वह कैसा
आगे की सुधि लेइ
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