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________________ शराब पीता नहीं हूं, किंतु परसों की ही घटना है। मैं गोगामेड़ी में था। वहां के लोग मेरे पास आए। प्रभुदानजी बारठ वहां के प्रमुख और प्रभावशाली व्यक्ति हैं। वे बोले-'आचार्यजी! कृपा करके ग्रामवासी लोगों का शराब से पिंड छुड़ा दीजिए।' मैंने शराब छोड़ने का आह्वान किया तो कइयों ने इनकार कर दिया। आखिर प्रभुदानजी ने सलक्ष्य एक जागीरदार की ओर संकेत किया। मैंने उनसे पूछा तो वे बोले-'महाराज! मैं शराब पीता तो नहीं, किंतु पिलाता अवश्य हं; और पिलाने के लिए कभी-कभी थोड़ी-बहुत पीनी भी पड़ती है। थोड़ी पिलाता हूं और काम ज्यादा लेता हूं। यहां के अफसरों व अधिकारियों से काम निकलाना होता है। चूंकि सीधे तरीके से काम होता नहीं, इसलिए ऐसा करना पड़ता है। आठ रुपए मन के गुड़ से मैं यह साधारण चीज तैयार करता हूं। पर वे लोग बोतल देखकर खुश हो जाते हैं। फलतः मेरा काम बहुत आसानी से बन जाता है।' मुझे लगा, आदमी समझदार हैं। सोचकर काम करते हैं। ये सर्वथा शराब तो संभवतः नहीं छोड़ सकें, पर नशे के रूप में पीने का त्याग कर सकते हैं। मैंने प्रेरणा दी। प्रेरित होकर उन्होंने नशे के रूप में शराब का उपयोग न करने की प्रतिज्ञा ग्रहण कर ली। होशियार भी, बदनाम भी ___हां, तो मैं कहा रहा था कि व्यापारी लोग सामंजस्य करना जानते हैं, इसलिए वे होशियार कहलाते हैं, पर जितने होशियार कहलाते हैं, उतने ही बदनाम भी हैं। प्रश्न होता है कि जब आज कोई भी वर्ग ऐसा नहीं है, जिसमें बुराई न हो, फिर व्यापारी ही बदनाम क्यों होते हैं। इसका उत्तर बहुत स्पष्ट है। उन्होंने अपनी होशियारी का सदुपयोग की अपेक्षा दुरुपयोग अधिक किया है। दूसरा कारण है-उनकी बढ़ती हुई लालसा। कैसी बात है कि वे जानते-बूझते हुए भी अनजान बन रहे हैं! क्या वे जानते नहीं हैं कि यह धन-वैभव नश्वर है? क्या वे इस सचाई से अनभिज्ञ हैं कि यह न तो उनके साथ जानेवाला है और न जीवन-भर टिकनेवाला ही है? फिर उसे बटोरने के लिए बेतहाशा दौड़ क्यों? लक्ष्य क्या है __ मैं बहुधा व्यापारियों से पूछा करता हूं कि आपका लक्ष्य क्या है; लाखों-करोड़ों रुपए क्यों कमाते हैं, इसके पीछे कोई सामाजिक या धर्म और व्यवहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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