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________________ तमाचा लगाता है तो दूसरा भी उसके सामने कर दो।' श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है-आत्मैवात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः। पर ये सब ऊंचे आदर्शों की बातें हैं। पहुंचे हुए साधक ही इन्हें निभा सकते हैं। आम आदमी इन्हें व्यवहार्य नहीं बना सकता। अहिंसा का व्यावहारिक रूप जन-साधारण के लिए अहिंसा का व्यावहारिक रूप है-वह निरपराध प्राणी का वध न करे। तोड़-फोड़मूलक प्रवृत्तियों में भाग न ने। गुस्से में बेभान न बने। व्यापार-व्यवसाय में प्रामाणिकता रखे। खादृ पदार्थों में बेमेल मिलावट न करे। तौल-माप में कमी-बेशी न करे। ऐसा झूठ न बोले, जिससे किसी का बड़ा अहित हो जाए। खान-पान की शुद्धि और अशुद्धि का विवेक रखे। यानी मांस-मद्य-जैसे अखाद्य और अपेय परार्थों का सेवन न करे। धर्म प्रायोगिक बने ____ मैं मानता हूं, ये छोटी-छोटी सीमाएं यदि व्यक्ति स्वीकार कर लेता है तो उसका जीवन काफी अच्छा बन सकता है। गहराई से देखा जाए तो यही धर्म का प्रायोगिक रूप है। यह सुनिश्चित है कि जब तक धर्म का प्रायोगिक रूप सामने नहीं आता, तब तक लोगों की आस्था उस पर गहरी टिकती नहीं। आज विज्ञान धर्म से आगे है। इसका कारण यही तो है कि वह प्रायोगिक है। वह अपनी हर स्थापना प्रयोग के धरातल पर उपस्थित करता है। मेरा अभिमत है कि जिस दिन धर्म को भी प्रयोग का धरातल प्राप्त होगा, उस दिन विज्ञान भी धर्म के समक्ष प्रणत हो जाएगा, किंतु जब तक धर्म केवल ग्रंथों और धर्मस्थानों की शोभा का तत्त्व बना रहता है, रूढ़ियों से जकड़ा रहता है, तब तक ऐसी आशा नहीं की जा सकती। इसलिए आज सबसे बड़ी अपेक्षा है कि धर्म का प्रायोगिक रूप सामने आए। इसी में व्यक्ति और धर्म दोनों का हित निहित है। धर्म के लिए हम हवा की बात न करें, क्योंकि हवाई महल का कोई अस्तित्व नहीं होता। अणुव्रत हवाई महल नहीं है। इसी लिए वह जन-जन के आकर्षण का केंद्र है। जन-साधारण इसे आधार मानकर चले तो धर्म का निखरा हुआ व्यावहारिक और प्रायोगिक रूप सामने आ सकता है। भादरा, १५ फरवरी १९६६ .२४. आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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