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________________ • लोग दुःख नहीं चाहते, पर उसका कारण नहीं मिटाते। (२५६) • पूर्ण वीतराग बनना दीर्घकालीन साधनासापेक्ष है, पर आंशिक वीतरागता तो हम और आप आज भी प्राप्त कर सकते हैं। (२६१) 'जैसे को तैसा' का सिद्धांत राजनीति में मान्य हो सकता है, पर धर्मनीति में इसका कोई महत्त्व नहीं है। (२६१) • कोई संकीर्ण वृत्तिवाला व्यक्ति चूने-पत्थर के मंदिर में किसी को घुसने से रोक सकता है, पर मन-मंदिर में उपासना करने से कोई किसी को नहीं रोक सकता। (२६२) हिंसा और अहिंसा का संबंध किसी प्राणी के मरने और जीने से नहीं है। उसका संबंध है स्वयं के उत्थान और पतन से, उसका संबंध है स्वयं के प्रमाद और अप्रमाद से, स्वयं की सत और असत वृत्तियों से। (२६३) • खाद्य-संयम अहिंसा है, अनेक प्रकार की शारीरिक एवं राष्ट्रीय समस्याओं का समुचित समाधान है। (२६७) आसक्ति जितनी कम होती है, पाप का बंधन उतना ही शिथिल होता है। इसके ठीक विपरीत आसक्ति जितनी गहरी होती है, बंधन उतना ही प्रगाढ़ होता है। (२६८) अनुस्रोत अनंत जन्म-मृत्यु का धुमाव है, जबकि प्रतिस्रोत निर्वाण है, मुक्ति है। (२७०) • भोग अनुस्रोत का मार्ग है और त्याग प्रतिस्रोत का। (२७०) • धन शरीर के स्तर पर सुविधा प्रदान करता है, जबकि सुख का संबंध हमारी आत्मा से है। (२७१) • सही मार्ग पर बढ़नेवाला निश्चय ही एक दिन अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेता है। लक्ष्य भले कितना ही दूर क्यों न हो, वह उसकी सफलता में बाधक-कारण नहीं बनता। (२७१) मैत्री आत्मोदय का एकमात्र मार्ग है। इसका विकास करने के लिए दूसरों की भूलें भूलना आवश्यक है, स्वयं की भूलों का परिमार्जन करना जरूरी है। यह वैर का गट्ठर जिसके सिर पर रहता है, वह रात-दिन इसके भार से दबा रहता है। इसे उतारने से ही दिमाग हलका होता है, मन स्वस्थ होता है। (२७७) प्रेरक वचन ३५१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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