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कषायों से विरति ये सारी बातें सम्यक्त्वी के लिए अनिवार्य हैं।
शम, संवेग आदि पांच लक्षण, निःशंकित, निःकांक्षित आदि आठ आचार तथा शंका, कांक्षा आदि पांच दूषणों से मुक्ति-यह सम्यक्त्वी
की पहिचान है। सम्यग्दृष्टि-देखें-सम्यक्त्वी। सुलभबोधि-जो जीव सम्यक दर्शन के सम्मुख होकर बोधि-प्राप्ति की दिशा में
गति करने के लिए उद्यत हो जाता है, वह सुलभबोधि कहलाता है। स्कंध-प्रत्येक अजीव-अस्तिकाय के पूर्ण द्रव्य को स्कंध कहा जाता है।
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय का केवल एक-एक स्कंध है। वह सदैव एक और अखंड रहता है। पुद्गलास्तिकाय के अनंत स्कंध होते हैं। उनकी रचना परमाणुओं के संघात (मिलन) या स्कंधों के भेद (विघटन) से होती है। संघात से रचना में दो से लेकर अनंत तक के परमाणु एकीभूत हो जाते हैं। दो परमाणुओं के मिलने से बनानेवाला स्कंध द्विप्रदेशी, तीन परमाणुओं के मिलने से बननेवाला स्कंध त्रिप्रदेशी स्कंध कहलाता। इसी क्रम में चार प्रदेशी, ... दश प्रदेशी"सौ प्रदेशी हजार प्रदेशी"संख्येय प्रदेशी, असंख्येय प्रदेशी और अनंतप्रदेशी स्कंध होते हैं।
देखें-परमाणु, प्रदेश। स्थावर जीव-हित की प्रवृत्ति एवं अहित की निवृत्ति के निमित्त जो जीव
गमनागमन करने की अर्हता से रहित होते हैं, वे स्थावर जीव हैं। एकेंद्रिय जीव-पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक एवं वनस्पतिकायिक स्थावर जीव हैं। जो जीव त्रस नहीं हैं, वे स्थावर जीव हैं।
देखें-त्रस जीव। स्वयंबुद्ध-शास्त्र-श्रवण, सत्संग आदि किसी बाहरी निमित्त के बिना जो स्वयं
बोधि प्राप्त कर मुक्त होता है, उसे स्वयंबुद्ध कहते हैं।
पारिभाषिक कोश
-०३४३.
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