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________________ दर्शनमोहनीय की तीन प्रकृतियां हैं-१. सम्यक्त्वमोहनीय २. मिथ्यात्व-मोहनीय ३. मिश्रमोहनीय। चारित्रमोहनीय की पचीस प्रकृतियां है-१. अनंतानुबंधी क्रोध २. अनंतानु-बंधी मान ३. अनंतानुबंधी माया ४. अनंतानुबंधी लोभ ५. अप्रत्याख्यान क्रोध ६. अप्रत्याख्यान मान ७. अप्रत्याख्यान माया ८. अप्रत्याख्यान लोभ ९. प्रत्याख्यान क्रोध १०. प्रत्याख्यान मान ११. प्रत्याख्यान माया १२. प्रत्याख्यान लोभ १३. संज्वलन क्रोध १४. संज्वलन मान १५. संज्वलन माया १६. संज्वलन लोभ १७. हास्य १८. रति १९. अरति २०. भय २१. शोक २२. जुगुप्सा २३. स्त्रीवेद २४. पुरुषवेद २५. नपुंसकवेद। यौगलिक काल-अवसर्पिणी के प्रथम तीन आरों में तथा उत्सर्पिणी के अंतिम तीन आरों में मनुष्यों का जीवन मुख्यतः प्रकृति पर आधारित रहता है। सभी आवश्यक सामग्री की पूर्ति कल्पवृक्षों से होती है। भाई और बहिन के रूप में एक युगल जन्म लेता और वही आगे चलकर पति-पत्नी के रूप में बदल जाता है। इसे यौगलिक काल कहा जाता है। यौगलिक मनुष्य प्रकृति से बहुत सरल और अल्पकषायी होते हैं। उनका जीवन अत्यंत सुखी और शांत होता है। देखें-अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी, आरा। लव-काल का एक सूक्ष्म भाग। एक मुहूर्त में ७७ लव होते हैं। देखें-मुहूर्त। वीतराग-राग-द्वेष से मुक्त आत्मा को वीतराग कहते हैं। वीतराग ग्यारहवें से चौदहवें गुणस्थान तक होता है। देखें-गुणस्थान। दूसरे शब्दों में क्रोध, मान, माया और लोभरूप चार कषायों से मुक्त-'अकषाय' को वीतराग कहते हैं। व्रती-सावद्य-पापकारी प्रवृत्तियों का विधिपूर्वक त्याग करनेवाला सम्यग्दृष्टि जीव व्रती कहलाता है। उसकी दो श्रेणियां हैं-महाव्रती और अणुव्रती। अणुव्रती या बारह व्रतों को धारण करनेवाला श्रावक कहलाता है। देखें-महाव्रती, श्रावक। शैलेषी अवस्था-चौदहवें गुणस्थान में जीव मन, वचन और काया का समस्त व्यापार निरुद्ध कर संपूर्ण अक्रिय या अयोग अवस्था को प्राप्त कर लेता है। यह शैलेषी अवस्था है। इसका कालमान पांच ह्रस्व अक्षरों के उच्चारण में लगनेवाले समय जितना होता है। इस अवस्था के पश्चात जीव पारिभाषिक कोश -- ३४१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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