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________________ व्यक्त हो जाते हैं। वे जनकल्याण के लिए काम करते हैं, इससे उनका स्वार्थ स्वतः संपादित हो जाता है। दुर्जनों के प्रति वे तितिक्षु रहते हैं, फलतः दुर्जन स्वयं दूषित हो जाते हैं। ऐसी आश्चर्यकारी चर्यावाले ये संत किसके लिए पूज्य नहीं हैं? प्रसंग अब्राहम लिंकन का गृहत्यागी संतों की बात हम दो क्षण के लिए छोड़ें। गृहस्थ अवस्था में भी जो महान व्यक्ति होते हैं, उनकी चिंतनशैली और व्यवहारशैली कुछ विशिष्ट ही होती है। अमेरीका के भूतपूर्व राष्ट्रपतिः अब्राहम लिंकन अपने दुश्मनों को भी प्यार करते थे। एक बार उनके एक मित्र ने कहा-'तुम अपने शत्रुओं के प्रति इतने उदार क्यों हो? उन्हें तो तुम्हें खत्म कर देना चाहिए।' अब्राहम लिंकन ने उत्तर दिया-'मैं तो अपने दुश्मनों को खत्म ही कर रहा हूं, पर तुम यह बात समझ नहीं पा रहे हो। हां, खत्म करने का मेरा अपना एक तरीका है। लोग दुश्मनों को मारकर खत्म करते हैं, पर मैं उनसे प्यार कर उन्हें खत्म कर रहा हूं। प्यार करने से सारे दुश्मन दोस्त हो रहे हैं और मैं दुश्मनों की संख्या शून्य रखना चाहता हूं।' नवीनता में आकर्षण होता है अभी कहा गया कि आचार्यजी ने संसार को जो मार्ग दिखाया है, वह जन-जन के लिए आदरणीय है। मैं सोचता हूं, मैंने कोई नई बात नहीं बताई है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का दर्शन आज से हजारों वर्षों पहले ऋषियों ने दिया। महाव्रत, अणुव्रत, शील और यम के रूप में उन्होंने जो मार्ग बताया, उसी को आधार मानकर हम काम कर रहे हैं। ___ दूसरी दृष्टि से देखें तो बात ठीक है। मैंने अनुभव किया कि संसार को नवीनता में आकर्षण है। जनता को सही रास्ते पर लाना है तो उस मार्ग को नए रूप में रखकर आकर्षण भी पैदा करना होगा। यह एक शाश्वत तथ्य है कि शांति की प्यास सबको है और शांति का एकमात्र मार्ग धर्म है, संयम है। धर्म के बिना शांति मिल नहीं सकती, संयम के बिना शांति सध नहीं सकती, पर सीधे धर्म की बात बताएं तो काम नहीं होगा। यह इसलिए कि जनता को धर्म से प्रेम नहीं है। एक पढ़ा-लिखा आदमी धर्म को ढर्रा मानता है। इसलिए इसमें परिष्कार की अपेक्षा है। आचार और विचार से पवित्र बनें - २७९ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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