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________________ मिठाई खाना नहीं छोड़ा। फलतः हालत बहुत बिगड़ गई । वैद्य को बुलाया गया । वैद्य ने शरीर का निरीक्षण किया, बीमारी का कारण समझा । सारी स्थिति ध्यान में आने के पश्चात वह बोला- 'तुम्हारी चिकित्सा मैं क्या करूं, तुम तो जानबूझकर बीमार पड़े हो ! यदि स्वस्थ होना है तो मिठाई खाना बंद करना होगा।' लड़का बोला- 'वैद्यजी ! मैं तो अपने पिताजी की आज्ञा का पालन कर रहा हूं। उनकी आज्ञा से परे मैं कैसे जा सकता हूं? मिठाई खाने का उनका आदेश है। यदि मैं मिठाई खाना छोड़ दूंगा तो उन्हें बहुत दुःख होगा । इसलिए मैं मिठाई तो नहीं छोड़ सकता।' वैद्य ने कहा- 'तुम्हारे पिताजी का यह आदेश है तो गलत है। मिठाई खाना तुम्हारे लिए अत्यंत अहितकर है।' चेतावनी के स्वर में कहा - ' अब भी यदि तुमने मिठाई नहीं छोड़ी तो जीवन से हाथ धो बैठोगे ।' पर लड़के पर इस चेतावनी का भी कोई असर नहीं हुआ । मिठाई छोड़ने की बात उसे इस खतरे की कीमत पर भी मंजूर नहीं हुई। आखिर वैद्य बेचारा क्या करता ? चिकित्सा व्यवस्था किए बिना ही लौट गया। लड़के की हालत क्रमशः अधिक चिंताजनक बनती जा रही थी । उसके पिता के एक घनिष्ठ मित्र को उसकी बीमारी की खबर लगी । वह उसे देखने आया। उसकी चिंतनीय हालत देखकर उसने पूछा - 'यह हालत कैसी बनी ? बात क्या है ?' उसका इतना पूछना था कि लड़का फूट पड़ा - 'मेरे पिताजी ने मेरे साथ न जाने किस जन्म की दुश्मनी निकाली है। वे मुझे बेमौत मारना चाहते हैं ! " पिता का वह मित्र समझदार और अनुभवी था। उसे स्वर्गीय मित्र की सीख का रहस्य समझते समय नहीं लगा । मित्र-पुत्र को समझाता हुआ वह बोला-'तुम्हारे पिताजी को मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं। वे सबके हित-चिंतक थे। तुम तो खैर उनके इकलौते पुत्र हो, वे तो दुश्मन के साथ भी गलत व्यवहार नहीं करते थे, उसे अनुचित सलाह तक नहीं देते थे । तुम्हारे लिए उनके आदेश के पीछे अवश्य कोई हित चिंतन होना चाहिए, पर संभवतः तुम उसका रहस्य पकड़ नहीं पाए हो ।' एक क्षण रुककर वह बोला-'मुझे लगता है कि तुमने पिताजी के आदेश का सम्यक पालन नहीं किया। उन्होंने तुम्हें मीठा भोजन करने के लिए कहा था, मिठाई खाने के लिए नहीं । मीठे भोजन का अर्थ गुड़-शक्कर और मिष्टान्न नहीं है, बल्कि भूख लगने पर भोजन करना है। देखो, बिना भूख मीठा - से मीठा पदार्थ भी न केवल बेस्वाद / कड़वा लगता है, बल्कि शरीर को आगे की सुधि इ • २६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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