SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संग्रह के साथ व्युत्सर्ग का भी पूरा-पूरा मूल्य समझना चाहिए। एकांगी पकड़ हितकर नहीं कुछ लोग केवल संग्रह की बात पकड़ लेते हैं, व्युत्सर्ग की बात सर्वथा अजरअंदाज कर देते हैं। यह एकांगी पकड़ अच्छी बात नहीं है। इसका दुष्परिणाम उन्हें भोगना पड़ता है। इस परिप्रेक्ष्य में मैं तो यह भी कहना चाहता हूं कि एकांगी पकड़ किसी बात की अच्छी नहीं होती। गुरु की महिमा हमारे यहां बहुत गाई गई है। कहा जाता है कि गुरु के बिना गति नहीं होती। एक अपेक्षा से बात सही है, गलत नहीं है। नाविक के बिना नौका कौन खेए ? ड्राइवर के बिना गाड़ी कौन चलाए? इसी प्रकार गुरु के बिना मोक्ष का मार्ग कौन बताए? व्यक्ति गुरु से ज्ञान रूपी प्रकाश पा अपने कल्याण का पथ आलोकित कर सकता है, पर गुरु कैसा हो, इसका विवेक भी बहुत अपेक्षित है। 'गुरु बिना गति नहीं'-इस बात के आधार पर यदि किसी अयोग्य व्यक्ति को गुरु बना लिया जाता है तो गति-सद्गति होने की बात तो कहीं रही, उलटी दुर्गति हो जाती है। गुरु बनने का अधिकारी आप लोग गृहस्थ हैं। आपके बाल-बच्चे हैं, परिवार है। इसलिए आप धन-संपत्ति रखते हैं, पर आपके गुरु भी यदि धन-संपत्ति से जुड़े हुए हैं तो आपमें और उनमें अंतर ही क्या है? बहुत-से संत, महंत व जगद्गुरु कहलानेवाले लोग ऐसे हैं, जो धन-संपत्ति, मठ, मंदिर पर अत्यंत आसक्त हैं। उन्हें त्यागी कैसे माना जा सकता है? वस्तुतः गुरु बनने का अधिकारी वही है, जो त्यागी है। जो स्वयं त्यागी नहीं है, वह दूसरों को कल्याण का रास्ता कैसे दिखा पाएगा? जो स्वयं मोह-माया में फंसा है, वह दूसरों को उससे बाहर कैसे निकाल सकेगा? पर हमारे कुछ भोले भाई कहते हैं कि साधु कैसा भी क्यों न हो, हमारे से तो अच्छा ही है। आचार्य भिक्षु ने इस बात का तीव्र प्रतिवाद किया। इस संदर्भ में उन्होंने एक दृष्टांत दिया हैवे गृहस्थ उन साधुओं से अच्छे हैं! एक व्यक्ति सुबह-सुबह तांबे का एक पैसा लेकर दुकानदार के पास गया। दुकानदार ने पैसा हाथ में लेकर उसे माथे के लगाया और बोला-'आज तो अच्छी बोहणी हुई! लाभ का द्वार खुल गया!' दूसरे दिन सुबह वही व्यक्ति चांदी का एक रुपया लेकर उसी दुकानदार के पास सौदा खरीदने के लिए पहुंचा। दुकानदार आज और भी अधिक प्रसन्न हुआ। अच्छे और बुरे का विवेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy