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________________ संत स्मृतिपटल पर उतर आते हैं, आंखों में उनकी मूरत तैरने लगती है। ऐसी स्थिति में दुर्बल मन पुनः दृढ़ हो जाता है। शराब और तंबाकू के घातक परिणाम अणुव्रत के छोटे-छोटे संकल्पों की संक्षिप्त चर्चा मैंने प्रारंभ में की। ये संकल्प स्वीकार करके आप अपना जीवन बुराइयों से मुक्त बना सकते हैं। यों तो बहुत-सी बुराइयां समाज में फैली हुई हैं, पर आज मैं अधिक व्यापक दो बुराइयां छोड़ने का आह्वान कर रहा हूं। ये दो बुराइयां हैं-मद्यपान और धूम्रपान। दिखने में ये दोनों बुराइयां किसी को छोटी-छोटी लग सकती हैं, पर इनका असर बहुत ही घातक है। मद्यपान की बुराई तो अपने-आपमें बहुत-सी अन्य बुराइयों की संरक्षिका है। इस एक बुराई के कारण न जाने दूसरी-दूसरी कितनी बुराइयां अपने-आप चली आती हैं। एक अपेक्षा से इसे मानवता की नाशक कहा जा सकता है। तंबाकू भी बहुत नुकसान की चीज है। अभी अणुव्रत पत्र में एक शोध- निबंध प्रकाशित हुआ है। उसमें लिखा है-'तंबाकू का नशा शराब, भांग, गांजा, अफीम, चरस तथा धतूरे के बीजों के नशे से भी अधिक घातक होता है। तंबाकू का विष शरीर में पहुंचकर धीमे-धीमे काम करता है। एक सेर तंबाकू का विष आठ सौ चूहों, एक सौ बीस खरगोशों तथा तीस मनुष्यों के प्राण ले सकता है।' तंबाकू में निकोटिन नामक घातक जहर होता है। गाय, भैंस, बैल, गधा आदि पशु इसे नहीं खाते, क्योंकि उनमें प्रकृति की समझ है। वे अपने न खाने की चीज किसी हालत में नहीं खाते, पर आदमी न जाने कैसा विचित्र प्राणी है कि वह प्रकृति और अप्रकृति कुछ नहीं समझता! खाद्य-अखाद्य का विवेक नहीं करता !! इसी लिए न खाने और न पीने के पदार्थ भी बेझिझक काम में ले रहा है। शायद वह प्रकृति पर विजय पाना चाहता है! लेकिन उसे समझना चाहिए कि प्रकृति के विरुद्ध जाकर कोई प्राणी सुख से नहीं जी सकता। शिष्टाचार के नाम पर भ्रष्टाचार इसी संदर्भ में एक बात और-आजकल बहुत-से पढ़े-लिखे लोग शिष्टाचार के नाम पर यह जहर अपने शरीर में पहुंचाते हैं। मैं ऐसे शिष्टाचार को भ्रष्टाचार समझता हूं। पता नहीं कि उनकी बौद्धिकता पर यह दुर्बलता क्यों छा रही है। अनपढ़ लोग अज्ञानवश तंबाकू खाते-पीते हैं, यह .२१८ - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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