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________________ कि वह इनका बिलकुल भी आचरण नहीं कर सकता। एक सीमा तक वह भी इनका पालन आसानी से कर सकता है। फिर एक सद्गृहस्थ के लिए यह आवश्यक भी है, अन्यथा वह सुख और शांति से जी भी नहीं सकता । अणुव्रत कहता है कि व्यक्ति रक्षक भले न बन सके, पर भक्षक तो न बने, देव भले न बन सके; पर दानव तो न बने; सत्यवादी हरिश्चंद्र भले न बन सके, पर अनर्थकारी झूठ तो न बोले । व्यापार-व्यवसाय वह नहीं छोड़ सकता, पर उसमें अप्रामाणिकता तो न करे, ग्राहकों को धोखा तो न दे, ब्लैकमार्केटिंग तो न करे, अधिक संग्रह तो न करे। वह पूर्ण ब्रह्मचारी नहीं बन सकता, पर व्यभिचार से तो बचे, भोग की कोई सीमा तो रखे। इस प्रकार के छोटे-छोटे संकल्प स्वीकार करके व्यक्ति अपना जीवन स्वस्थ रख सकता है। धार्मिकता और क्या है ? जीवन की स्वस्थता / पवित्रता का नाम ही तो धार्मिकता है। धर्म का यह ऐसा स्वरूप है, जिसके बारे में किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती। और तो क्या, नास्तिक या कम्यूनिस्ट कहलानेवाले भी इसे शांतिमय जीवन के आधार के रूप में प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करते हैं। जाति, वर्ग, वर्ण, संप्रदाय आदि का झंझट तो इसमें है ही नहीं। मानवता और जीवन की पवित्रता में विश्वास रखनेवाला हर मनुष्य यह आचार-संहिता अपना सकता है। मुझे यह कहते हुए अत्यंत प्रसन्नता है कि अणुव्रत धर्म का मौलिक स्वरूप उजागर करने में अहम भूमिका निभा रहा है। आज वह तेजी से जन-धर्म या मानव-धर्म के रूप में प्रतिष्ठित होता जा रहा है। लोकतंत्र और धर्म बहुत बार यह प्रश्न आता है कि क्या लोकतंत्र में धर्म की पालना संभव है। मैं मानता हूं, धर्माराधना की दृष्टि से एकतंत्र व साम्यवाद फिर भी बाधक बन सकते हैं, पर जनतंत्र में वैसी स्थिति पैदा होने की संभावना नहीं लगती। मेरा मानना है कि जितनी शासन-प्रणालियां आज हमारे सामने हैं, उनमें जनतंत्र की प्रणाली धर्म की साधना की दृष्टि से सबसे अनुकूल है। आप देखें, जनतंत्र में हर व्यक्ति अपने विचार देने में स्वतंत्र है। साहित्य या वक्तृत्व के माध्यम से हर व्यक्ति के विचार जनता के सामने आ सकते हैं। उन विचारों को कुचलने का अधिकार किसी को नहीं है । यह सिद्धांत अहिंसा का प्रतीक है। भगवान महावीर ने कहा- 'किसी की जनतंत्र और धर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only १३५ www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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