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प्रकाशकीय
कालजयी व्यक्तित्व आचार्य श्री तुलसी की अमृत-वाणी (प्रवचन) के संकलन भिन्न-भिन्न नामों से प्रवचन पाथेय ग्रंथमाला के पुष्पों के रूप में वर्षों से जैन विश्वभारती द्वारा प्रकाशित होते रहे हैं। विगत कुछ वर्षों से आचार्य श्री तुलसी का साहित्य तुलसी वाङ्मय के रूप में संकलित/ संपादित हो रहा है। सुझाव आया कि 'प्रवचन पाथेय ग्रंथमाला' को भी तुलसी वाङ्मय में समाविष्ट कर देना चाहिए। सुझाव उपयुक्त था। अतः अब यह ग्रंथमाला तुलसी वाङ्मय के एक महत्त्वपूर्ण अंग के रूप में प्रकाशित हो रही है। इससे इस ग्रंथमाला की व्यापकता और बढ़ेगी, ऐसी आशा है।
प्रस्तुत ग्रंथमाला के संयोजन/संपादन में आदरणीय मुनिश्री धर्मरुचिजी ने अपने समय, श्रम एवं शक्ति का जो नियोजन किया है, वह प्रशस्य और अनुकरणीय है। इस ग्रंथमाला के प्रकाशन में चाडवास (राज.) निवासी श्रद्धा की प्रतिमूर्ति स्व. श्रीमती मक्खूदेवी (धर्मपत्नी श्री चंदनमलजी लूणिया) की पुण्य स्मृति में शासनभक्त एवं समर्पित लूणिया परिवार का अर्थ-सौजन्य उपलब्ध हुआ है। इस सहयोग के लिए श्रीमती फूलदेवी (धर्मपत्नी स्व. नेमीचंदजी लूणिया) एवं श्री पन्नालालजी, श्री शुभकरणजी तथा उत्साही युवा कार्यकर्ता श्री मनोज लूणिया के प्रति जैन विश्वभारती की ओर से हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं और यह आशा करता हूं कि यह परिवार संस्था की विभिन्न प्रवृत्तियों के विकास में इसी प्रकार योगभूत बना रहेगा। इस कार्य के संपादन में सर्वोत्तम साहित्य संस्थान के भाई किशन जैन की निष्ठापूर्ण सक्रियता रही है। प्रमोद कुमार ने बहुत तत्परता से कंपोजिंग कार्य किया है। इन सबके सहयोग की स्मृति करते हुए यह आशा करता हूं कि इस ग्रंथमाला से जन-जन को नई दिशा और नई दृष्टि मिलेगी।
दिनांक २६ सितंबर २००४ २०१वां भिक्षु निर्वाण वर्ष जैन विश्वभारती, लाडनूं
नरेंद्र छाजेड़
मंत्री जैन विश्वभारती
चौदह
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